*चाँद कुछ कहना है आज * ( 17 of 25 )
चाँद कुछ कहना है आज
हर पूर्णिमा को चाँद तुमसे
जिस परी ने मिलवाया था ,
तुम्हारी सुन्दर छवि निहारना
उन्होंने ही तो सिखलाया था ,
लोग देखते थे दाग तुम्हारे
घटते बढ़ते पर तुम न हारे,
जब उनकी निगाहों से देखा
तुम्हें बहुत सुन्दर पाया था ,
तुम्हारी तरह थोड़ा मजबूर था
रोशन चहरा तुम्हारे नूर सा ,
चाँद कुछ कहना है आज
उनका अक्स नजर आया था ,
मामा हो तुम बचपन से आज
माँ का चहरा तुम में पाया था,
माफ़ करना चाँद मुझे पर
कम सुन्दर तुम्हें पाया था ,
अतुल्य सुन्दर था वो चहरा
जो तुम में नजर आया था ,
आज एक खिचाव था तुम में
जो आंखों में पानी लाया था …
– क्षमा उर्मिला