चलो अब गांव जाते हैं
वहाँ वो पेड़ बरगद का,वहाँ वो ताड़ भी होगा,
ली थी डुबकियां जिसमे,वहाँ तालाब भी होगा।
चिड़ियाँ चहचहाती थी, जहाँ हर रोज आंगन मे,
मेंढक शोर करते थे, जहाँ हर रोज सावन मे।
जहाँ बारिश के पानी को कटोरे मे संजोते थे,
टपकती बूंद को पेड़ों से हम झकझोड़ देते थे।
शहर की जगमगी दुनिया चलो अब भूल जाते हैं,
यहाँ की दौड़ती सड़को से चलो अब दूर जाते हैं,
चलो! चलो! अब गाँव जाते हैं।
–rishiiiiiii