चली रोशनी की बात हवाओं के साथ साथ..
सुनी हैं मैनें कहानियाँ ये जबां जबां से
हां अच्छे हैं हम इससे उससे फलां फलां से
था सीधा सा रास्ता अपना मंज़िल थी आसां
और होके आए हैं रब जाने कहाँ कहाँ से
चली रोशनी की बात हवाओं के साथ साथ
कह रही थी जाने क्या उस पल शमा शमा से
चला आसमाँ की ओर ये लेकर गुबार-ए-दिल
दबी थी आग जहाँ धुआँ उठ के वहाँ वहाँ से
नये दौर के इस शहर में कहाँ है तेरा घर
मुझको तो नज़र आते हैं यहाँ मकां मकां से
गिर जाती हैं बिजलियाँ बादलों से हसरत के
मिल आई है पहले ही या रब कज़ा कज़ा से
देती हैं पता ‘सरु’और भी कितनी बातों का
गुजर जाती हैं मेरी खुश्बुएं जहाँ जहाँ से