चमन बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बीक रहा है।
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ख़रीदो ख़रीदो चमन बिक रहा है।
पुरातन का सारा चलन बिक रहा है।
कबूतर ये तीतर ये कोयल बिकाऊ।
बिकेगा सभी कुछ यहाँ जो टिकाऊ
परिदों का प्यारा गगन बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बिक रहा है।।
ये सोने की चिड़ियाँ बिकाऊ है प्यारे।
ख़रीदो बिकाऊ ये दिलकश नजारे।
इंसान का अब अमन बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बिक रहा है।।
बहारें बिकाऊ हैं ख़ुशबू खरीदो।
ये झेलम, ये गंगा जी सरयू ख़रीदो।
इंसानियत का चलन बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बिक रहा है।।
ये गैय्या ओ मैना, फुदकती गौरैया।
बिकाऊ गगन की वो उड़ती चिरैया।
तहज़ीब हर इक कण बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बिक रहा है।।
आबोहवा भी यहाँ अब बिकेगी।
अमन चैन की सांस तक अब बिकेगी।
जो देवों को करते नमन बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बिक रहा है।।
गुड़हल, चमेली अबोली बिकाऊ।
होली, दीवाली, रंगोली बिकाऊ।।
मुहब्बत भरा हर कहन बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बिक रहा है।।
बदलते दिवस का सबेरा बिकाऊ।
बुजुर्गो का हर एक बसेरा बिकाऊ।।
अदब- औ- हया अंजुमन बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बिक रहा है।।
अखबार कागद कलम है बिकाऊ।
अल्फ़ाज़, अरमां अदम है विकाऊ।।
हर मोड़ पर अब सुखन बिक रहा है।
ख़रीदो – ख़रीदो चमन बिक रहा है।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’