चप्पलें
सुबह – शाम, सर्दी – गर्मी,
हर मौसम में, सुख में, दुख में,
जिन्दगी की भाग – दौड़ में,
देती हैं वो मेरा साथ,
कदम – कदम पर चुपचाप,
बिना किसी शिकायत,
बिना किसी फरमाईश के,
समेट लेती हैं मेरे हिस्से की,
धूल, काँटें, कंकड़ और गन्दगी,
अपने छोटे, नाजुक वजूद के नीचे।
देती हैं आराम मुझे,
जिन्दगी के हर मोड़ पर,
रखती हैं हर पल मेरा ख्याल,
एक वफादार साथी की तरह,
और, मैं –
होता है जब एहसास,
नहीं रही अब उनमें,
पहले सी सुन्दरता,
घटने लगती है मेरे लिए,
जब उनकी उपयोगिता।
बदल देती हूँ,
बदल देती हूँ,
बड़ी आसानी से उन्हें,
और कर देती हूँ,
एक झटके से बाहर,
अपनी जिन्दगी से,
अपनी पुरानी चप्पलों को।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
वर्ष :- २०१३.