चढ़ गई दहेज की भेंट नववधू
चढ़ गई दहेज की भेंट नववधू
आज खबर यह फिर आई
संदिग्ध मिला अधजला शव
खुद जल गई या आग लगाई
खबर लगे मैंके बालों को
इसके पहले चिता जलाई
छूटी नहीं हाथ की मेंहदी
पीहर जिंदा लौट न पाई
कैंसी है ये सभ्य समाज
भूख दहेज की छोड़ न पाई
अमंगल हुआ ये मंगल परिणय
वेटी के वाप की शामत आई
सब कुछ लुटा दिया उसने
लोभियों की भूख मिटा न पाई
भगवान करे दहेज लोलुप का
कभी न घर संसार वसे
वंश न आगे बढ़ पाए
जनम- जन्म कुंआरा ही मरे
उपेक्षित हो जाए समाज में
कोई न कन्यादान करें