चंडीगढ़ का रॉक गार्डेन
प्राणहीन चट्टानों को
मुस्काते देखा।
मूक राग अनकहे तराने
गाते देखा।
कोई अपनी प्रियसी को
टहलाय रहा है।
बिना हंसी के कोई बस
मुस्काय रहा है।
किसी का जन्म दिवस है
सो वह आया है।
रॉक गार्डन उसके मन को
भाया है।
मेरे मन पर छितर गयी एक
खुशी की रेखा।
प्राणहीन चट्टानों को
मुस्काते देखा।
जीर्ण शीर्ण समान कुशलता से
क्या खूब गढ़ा है।
सच में रॉक गार्डन निज में
दिखता बहुत बड़ा है।
टिकट के खर्चा में लगता
मामूली दाम।
सरल सुलभ है
अधिक मोल का नहीं है काम।
चटटानों की शोभा का
एक अदभुत लेखा।
प्राणहीन चट्टानों को
मुस्काते देखा।