ग़ज़ल
अपने नज़र आते नहीं उनको गुमाँ इतना हुआ
बुझ आग चाहत की गयी दिल में धुआँ इतना हुआ//1
आँखें चुराते हैं अमीरी में भुला बैठे अदब
भौतिक ज़हां का कुछ लगे उनको नशा इतना हुआ//2
जो सादगी भूले नहीं इंसानियत ज़िंदा तभी
भूला नहीं ये बात मैं मुझसे अदा इतना हुआ//3
मिट्टी उसे परहेज़ में मानी नहीं मुझसे मिला
फ़ितरत लगे छलिया तभी मुझसे ज़ुदा इतना हुआ//4
उसकी हँसी क़ातिल हुई दिल आ गया मैं क्या करूँ
धोका हुआ दिल से तभी पागल फ़िदा इतना हुआ//5
ये आपकी क़िस्मत हुई दौलत मिली चाहत मिली
हासिल नहीं तुमसा हुआ मेरा सिला इतना हुआ//6
चाँदी नहीं सोना नहीं पीतल नहीं लोहा नहीं
‘प्रीतम’ मिला चाहत मिली कैसे ग़िला इतना हुआ//7
आर. एस. ‘प्रीतम’