घोंसले
पन्त जी रिटारमेंट के बाद पहली बार पत्नी को ले कर घूमने निकले । फ़रवरी का माह था , मौसम में फगुनाहट थी । वातावरण में बौराये बूढ़े आम की मंजरी की ख़ुशबू लिये मदमस्त बयार डोल रही थी । ऐसे में वे जा पहुंचे भरतपुर पक्षी अभयारण्य , जहां एक रात खुले मैदान में तारों की छांव तले एक तिरपाल निर्मित टेंट में बिताने के बाद सुबह झील में पक्षियों को देखने निकल पड़े । पहले से आरक्षित नाव एवम नाविक किनारे पर उनके नाम की पट्टिका लिए इन्तज़ार करते मिल गए । ज़रा से सहारे के साथ दोनों नाव के अग्रिम भाग में सटकर बैठ गये । गुलाबी जाड़ा था , श्रीमती पन्त जी ने अपने ओढ़े शाल के एक छोर से पन्त जी के घुटनों को ढंक दिया । पानी पर सरकती नाव हल्के हिचकोले खाती हुई किनारा छोड़ चुकी थी । तभी बिल्कुल करीब से आई छपाक की एक आवाज़ के साथ उड़ती हुई एक जल मुर्गाबी ने ऊंचाई से सीधे पानी के अंदर गोता लगा कर एक मछली अपनी चोंच में पकड़ कर ऊपर हवा में उड़ गयी और झील के दलदली किनारों की मेड़ पर बने अपने घोंसले में चली गई । आगे बढ़ने पर झील चौड़ी हो गई थी जिसका विस्तार दूर दूर तक सैंकड़ों हैक्टेयर में फैला हुआ था । जिसके पानी के बीच बीच में कई पेड़ और झाड़ियों के झुरमुट और टापू से उग आये थे । नाव उन बबूल की कटीली झाड़ियों से बचाते हुए उन्हें ले जा रही थी । उन झाड़ियों की ऊंची टहनियों और फुनगियों के बीच , तिनकों और टहनियों पर बने कई छोटे बड़े घोंसले अटके थे नाविक ने बताया कि ये जो उल्टे लटके से घोंसले हैं ये बया के हैं जिनमें बया नीचे से घुसती है और जब नर चार पांच ऐसे घोंसले बनाता है तो उनमें से वह मादा किसी एक को पसन्द कर अंडे देती है , फिर उसी ने बताया कि ये जो बड़े बड़े तसले के आकार के घोंसले हैं ये सारस पक्षियों के घोंसले हैं जो इन कटीली झाड़ियों पर ही अपना घोंसला बनाते हैं जिससे झील के पानी में रहने वाले सांप इन टहनियों के कांटों पर चढ़ नहीं सकते , इस प्रकार इनके अंडे , बच्चे सांपों से सुरक्षित रहते हैं । उन घोसलों में से कुछ पर सारसों के भूख से बेहाल चूज़े आसमान की ओर अपनी लंम्बी गर्दन और चोंच ऊपर उठा कर ज़ोर ज़ोर से चायं चायं की आवाज़ निकाल कर चीख रहे थे , जिनका शोर वातावरण की शांति भंग कर रहा था । जहां एक घोंसले में एक सारस किनारे पर अपनी लंम्बी टांगों पर खड़े खड़े उन्हें लाई मछलियां खिला रहा था वहीं कुछ दूरी पर एक सारस अकेला एक फुनगी पर दूर अलग सा खड़ा था । उनके नाविक ने बताया कि वो अकेला सारस नर है जो बच्चों के शोर से परेशान हो कर दूर जा कर बैठा है और जो बच्चों को खिला रही है वह इनकी मादा है । यह सुन कर श्रीमति पन्त जी ने एक व्यंगात्मक दृष्टि पन्त जी पर फेरी जो अभी भी उस शांत नर सारस को देखे जा रहे थे और नाविक की बातें सुन रहे थे । नाविक ने उन्हें बताया कि ये प्रवासी पक्षी जाड़ों की शुरुआत में सुदूर ठंडे स्थलों से यहां आते हैं और अंडे देते हैं जिनसे कुछ हफ्तों में ही बच्चे निकल कर बड़े होने लगते हैं और एक दो महिनों में उड़ने लायक हो जाते हैं । फिर कुछ दिन ये नीची नीची उड़ान भरते हैं और फिर धीरे धीरे ऊपर उठते हुए ऊंची और ऊंची हज़ारों फ़ीट ऊंची उड़ानें भरना सीख लेते हैं और एक दो दिन तक नहीं लौटते । फिर एक दिन वे दूर आकाश की गहराइयों में कभी न लौटने के लिए खो जाते हैं । उसने कुछ खाली पड़े घोंसलों की ओर इशारा करते हुए बताया की अब वसन्त के आने के साथ साथ यहां गर्मियों की शुरूआत हो चुकी है और इन खाली घोंसलों के चूज़े सारस बन कर घोंसला छोड़ कर उड़ गए हैं । झरते कोहरे की धुंद को चीरते हुए उगते सूरज की किरणें झील की लहरों पर स्वर्णिम आभा बिखेर रहीं थीं । दोनों पति पत्नी मंत्रमुग्ध प्रकृति की फैली छटा में खोये थे । तभी पन्त जी ने देखा कि श्रीमती जी की खोई खोई सी आंखों के कोर गीले हो उठे थे । पन्त जी ने कोहनी से टहोक कर श्रीमती जी पर एक प्रश्नवाचक मौन इशारे से उनके इन आसुओं का कारण जानना चाहा । उत्तर में श्रीमती पन्त जी ने भी ख़ामोशी से अपनी उंगली का इशारा उन खाली पड़े कुछ घोंसलों की ओर कर दिया जो खाली पड़े थे ।
पन्त जी पत्नी की व्यथा को समझ कर बोले –
‘ पगली , व्यर्थं ही तुम आंसूं बहाती हो हमारा बड़ा सारस – मनोज फ्लोरिडा में है और छोटा वरुण आस्ट्रेलिया में है । हम लोगों के उन्हें कई बार अपने वैभव विलास , और इतनी सम्पदा का हवाला दे कर उन्हें अपने पास बुलाया तो था कि यहीं रह कर कुछ करो पर उन्होंने ने ही यह कह कर यहां आने से मना कर दिया कि जितना आप ने अपनी ज़िंदगी भर में अर्जित किया है उतना वो लोग वहां एक साल में कमा लेते हैं , उल्टा उनका आग्रह हमें ही वहां बुला कर अपने पास रखने का था । जिन प्रश्नों के उत्तर हमें ज़िन्दगी से नहीं मिलते उनका उत्तर हमें प्रकृति में मिल जाता है । लगता है इतनी दूर आ कर भी इस प्रकृति से तुमने कुछ सन्देश नहीं लिया । देखो इन सारसों को किस तरह खुशी खुशी बड़े हो कर अपना घोंसला छोड़ कर उड़ जाते हैं न कि इस जुदाई पर उजड़े तिनकों पर बैठ कर विलाप करते हैं । अपनी हर आने वाली नई पीढ़ी के स्वागत के लिए ये फिर नया घोंसला बनाएंगे और इसी तरह सृष्टि का सृजन चक्र चलता रहे गा । हम भी तो उस सृष्टि का एक हिस्सा हैं । आख़िर कितने लोग बड़े हो कर अपने बाप के बनाये मकान में रह पाते हैं । हर प्रजाति के जीव बड़े हो कर अपने जनक को छोड़ कर प्रकृति की गोद में स्वतंत्र विचरण करते है , सिवाय इस मानव के जो बुढ़ापे तक सन्तति के मोहपाश में जकड़ा रहता है ।
पन्त जी का यह ज्ञान श्रीमती पन्त जी को कुछ वैसा लगा ही जैसा कृष्ण से बिछुड़ी गोपिकाओं को उद्धव की सांत्वना दे कर समझाना लगा हो गा । पन्त जी के ज्ञान पर मां की ममता भारी पड़ गयी , वे उसी प्रकार डबडबाई आंखों से उन खाली घोंसलों पर अपनी दृष्टि जमाये तकती रहीं । तभी जलमुर्गियों की छपाक ने उनकी तन्द्रा भंग कर दी । कुछ देर और नौकाविहार करते हुए उन्होने पन्त जी वापिस चलने को कहा । वहां से दिन में अभी उन्हें मेहंदीपुर के बाल जी के दर्शन के लिए जाना था ।
एक लंम्बे थकान भरे सफर से लौट कर घर में प्रवेश करते ही उन्होंने देखा कि उनकी ग़ैरमौजूदगी में उनके पोर्टिको के एक कोने में एक अबाबील पक्षी के जोड़े ने कुछ मिट्टी और पत्थरों को जोड़ कर एक घोंसला बना लिया है । अंदर जाते समय पन्त जी दूध मंगवा कर सबके लिए चाय बनाने रसोई में चले गए और श्रीमती पन्त जी अपने अनुचरों को बुला कर अपने पेन्टहाउस की खाली पड़ी अट्टालिका के कमरों की साफ सफाई करवाने में जुट गयीं । जब पन्त जी सबके लिए एक ट्रे में चाय ले कर लौटे तो उन्हों ने देखा की श्रीमती जी ड्राइंग रूम के शो केस में सजे बया के घोंसले को देख रहीं थीं जो उन्होंने शायद पिछली यात्रा के दौरान किसी टहनी पर से उखाड़ कर अपने बैग में धर लिया था ।
चाय पी कर दोनों अपने अपने कामों में लग गए ।
श्रीमती पन्त जी अब पोर्टिको में स्थित अबाबील के घोंसले के करीब छत के कड़ों पर छींकों में एक कटोरे में चिड़ियों का चुग्गा और मिट्टी के तसले में पानी रखवाने का प्रबन्ध कर रहीं थीं , उधर पन्त जी अगली बार उनको फ्लोरिडा ले जाने के लिए लेपटॉप पर टिकट तलाश रहे थे ।
ऐसा लगा कि वहां से लौट कर श्रीमती पन्त जी का ममतामई मन तो प्रकृति से सीख लेते हुए घर गृहस्थी , नौकर चाकर , अबाबील आदि की व्यस्तता के बीच लग कर सन्तुष्ट होने लगा था पर पन्त जी को अपना मोह भरा पौरुष मन अभी भी सारसों के उड़ान भर कर छोड़ गए उन खाली पड़े घोंसलों के तिनकों पर से हटा पाना दुष्कर था ।
स्त्रियां अपनी ममता आस पड़ोस में बांट कर मन लगा कर जल्दी ख़ुश हो लेती हैं , जब कि पुरुष का लालची , दम्भी , खुदगर्ज़ी मन स्वयं की स्वार्थ सिध्दि में लगा रहता है ।