घनाक्षरी
संदल सुगन्ध गन्ध छोड़ता है रूप रंग
देख दिव्य अंग जगे मन में उमंग है।
प्रेयसी के संग छिड़े प्रेम का प्रसंग तब
अंग अंग में अनंग उठती तरंग है।
नैनों की कटार करे वार आर पार और
रूप का निखार करे घायल उछंग है।
केश काले काले लहराके जो निकलती तो
ज्ञानी सन्त साधकों का होता ध्यान भंग है।
अभिनव मिश्र अदम्य