घनाक्षरी के बारह प्रकार सविस्तार
घनाक्षरी के बारह प्रकार सविस्तार
आमुख
घनाक्षरी छन्दों को ठीक प्रकार से आत्मसात करने के लिए कुछ शास्त्रीय पदों को समझना आवश्यक है जो निम्लिखित प्रकार हैं-
मात्राभार :
किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाले तुलनात्मक समय को मात्राभार (संक्षेप में ‘भार’) कहते हैं। हिन्दी में इसके दो प्रकार हैं- लघु और गुरु। हृस्व वर्णों जैसे- अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ आदि का मात्राभार लघु होता है जिसे ल या 1 या । से प्रदर्शित करते हैं। दीर्घ वर्णों जैसे आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अह, का, की, कू, के, कै, को, कौ, कं, कः का मात्राभार गुरु होता है जिसे गा या 2 या S से प्रदर्शित करते हैं। संयुक्ताक्षर जैसे क्य, क्र, क्व, क्ष, त्र, ज्ञ आदि का मात्राभार लघु होता है तथा संयुक्ताक्षर के पूर्ववर्ती लघु का मात्राभार उच्चारण में सामान्यतः गुरु हो जाता है, जैसे- द्रव्य = गाल या 21, पत्रक = गालल या 211, कन्या = गागा या 22 आदि।
वर्णिक और वाचिक भार : किसी शब्द के वर्णों के अनुरूप मात्राभार को वर्णिक भार कहते हैं जबकि उच्चारण के अनुरूप मात्राभार को वाचिक भार कहते हैं, जैसे ‘विकल’ का वर्णिक भार ललल या 111 है जबकि वाचिक भार लगा या 12 है।
मापनी :
लघु-गुरु के विशेष क्रम को मापनी कहते हैं। मापनी दो प्रकार की होती है- वाचिक भार पर आधारित वाचिक मापनी तथा वर्णिक भार पर आधारित वर्णिक मापनी। मात्रिक छन्दों के लिए वाचिक मापनी तथा वर्णिक छन्दों के लिए वर्णिक मापनी का प्रयोग होता है।
छन्द :
छन्द मुख्यतः लय का व्याकरण है। ये दो प्रकार के होते हैं- मात्रिक और वर्णिक।
मात्रिक छन्द :
जिन छन्दों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है उन्हें मात्रिक छन्द कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- मापनीयुक्त और मापनीमुक्त।
वर्णिक छन्द :
जिन छन्दों में वर्णों की संख्या निश्चित होती है उन्हें वर्णिक छन्द कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- मापनीयुक्त और मापनीमुक्त। इनमे से 26 तक वर्णों वाले छन्द सामान्य तथा 26 से अधिक वर्णों वाले छन्द दण्डक कहलाते हैं। मापनीयुक्त दण्डकों को साधारण दण्डक कहते हैं जैसे कलाधर, अनंगशेखर आदि तथा मापनीमुक्त दण्डकों को मुक्तक दण्डक कहते हैं जैसे मनहर घनाक्षरी, रूप घनाक्षरी आदि।
छन्दों के तीन प्रकार : सभी छन्दों के तीन प्रकार होते हैं- (1) सम छन्द, जिनके चारों चरण एक समान होते हैं (2) अर्धसम छन्द, जिनके विषम चरण एक समान और इनसे भिन्न सम चरण एक समान होते हैं (3) विषम छन्द, जो सम और अर्धसम दोनों से भिन्न होते हैं।
घनाक्षरी छन्द :
सामान्यतः 30 से 33 वर्णों वाले मुक्तक दण्डकों को घनाक्षरी छन्द कहते हैं जिनमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है किन्तु प्रत्येक वर्ण का भार अनिश्चित होता है जैसे सूर, मनहर, रूप, जलहरण, कृपाण, लगान्त विजया, नगणान्त विजया और देव घनाक्षरी। इसके अतिरिक्त कुछ साधारण दण्डक भी घनाक्षरी की कोटि में आते हैं जिनमें वर्णों की संख्या के साथ-साथ प्रत्येक वर्ण का भार भी निश्चित होता है जैसे कलाधर, जनहरण, समात्रिक डमरू और अमात्रिक डमरू घनाक्षरी। तथापि परम्परा से सभी प्रकार के घनाक्षरी छन्दों को मुक्तक दण्डकों की कोटि में ही सम्मिलित करने का चलन रहा है।
घनाक्षरी का विशेष प्रवाह :
घनाक्षरी की मुख्य पहचान उसके विशेष प्रवाह से होती है। श्रेष्ठ घनाक्षरी छन्दों को लय में पढ़ने से यह विशेष प्रवाह रचनाकार को आत्मसात हो जाता है और वह उसी प्रवाह में रचना करने लगता है, साथ ही निर्दिष्ट शिल्प-विधान की दृष्टि से भी अपनी रचना को निरखता-परखता रहता है।
सम-विषम :
1,3,5 … वर्णों के शब्द को विषम तथा 2,4,6 … वर्णों के शब्द को सम कहते हैं। सम-विषम की गणना में शब्द के साथ उसकी विभक्ति को भी सम्मिलित कर लिया जाता है।
आन्तरिक अन्त्यानुप्रास :
जब घनाक्षरी में 8-8 वर्णों के पदों के अंत में समानता होती है तो इसे आतंरिक अन्त्यानुप्रास कहते हैं। इससे घनाक्षरी में विशेष लालित्य उत्पन्न होता है। उदारहरण के लिए इस लेख की छन्द संख्या 1 उल्लेखनीय है।
सिंहावलोकन :
जब किसी छन्द में प्रत्येक चरण के अंत में आने वाले शब्द या शब्द समूह से अगले चरण का प्रारम्भ होता है और छन्द के प्रारम्भ में आने वाला शब्द या शब्द समूह उसके अंत में आता है तो इस प्रयोग को सिंहावलोकन कहते हैं। इससे छन्द में विशेष लालित्य उत्पन्न होता है। उदारहरण के लिए इस लेख की छन्द संख्या 5 उल्लेखनीय है।
(विस्तृत अध्ययन के लिए लेखक की कृति ‘छन्द विज्ञान’ पठनीय है।)
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1. सूर/मनहरी घनाक्षरी
इस छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 30 वर्ण होते है, 8-8-8-6 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है, अंत में ललल उत्तम होता है, 8 वर्णों के पदों में विषम-सम-विषम प्रयोग वर्जित होता है।
यह वर्णिक मापनीमुक्त दंडक अथवा वर्णिक मुक्तक दंडक छन्द है।
महाकवि तुलसीदास ने विनयपत्रिका और गीतावली के पदों में इस छन्द का प्रचुरता से अनुप्रयोग किया है।
प्रस्तुत उदाहरणों में सभी चरणों के अंत में ललल आया है, किन्तु यह अनिवार्य नहीं है।
उदाहरण – कैसा है चलन
कुछ भी न काम-धाम, पड़े-पड़े आठों याम,
रटते हैं राम-राम, कैसा है चलन।
धर्म का न जानें मर्म, आलस में छोड़ें कर्म,
देख-देख मोटी चर्म, होती है घुटन।
मौन देखते अनीति, धर्म की नहीं प्रतीति,
भीरुता बनी है रीति, नीति का हनन।
कर्मवीर हनुमान, यही युग का आह्वान,
लंकापुरी को संधान, कर दो दहन। 1
2. मनहर/मनहरण घनाक्षरी
इस छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है, 16-15 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है जबकि 8-8-8-7 वर्णों पर यति उत्तम होती है, अंत में गा अनिवार्य होता है जबकि लगा उत्तम होता है, 8 वर्णों के पदों में विषम-सम-विषम प्रयोग वर्जित होता है।
यह वर्णिक मापनीमुक्त दंडक अथवा वर्णिक मुक्तक दंडक छन्द है।
यह घनाक्षरी का सवसे अधिक प्रचलित भेद है।
प्रस्तुत उदाहरणों के छन्द 10 में सिंहावलोकन का प्रयोग किया गया है तथा छन्द 18 से 22 तक एक ही भावभूमि पर उगी एक धारावाहिक रचना है जिनमें अंतिम चरण एक समान है।
उदाहरण – कला
सबसे बड़ा मैं कवि, सर्वश्रेष्ठ छन्दकार,
ऐसा नहीं दम्भ भरमाये कभी मुझको।
शिल्प सधी भाव भरी, रचना हो रस-सिक्त,
रंच भी न तोड़-जोड़, भाये कभी मुझको।
एक और एक और, कह के पढ़ूँ न बीस,
मीत कोई भी न टोक, पाये कभी मुझको।
अपनी सुना के भाग, लेते जो धता बता के,
उनकी कला न अम्ब, आये कभी मुझको। 2
3. कलाधर घनाक्षरी
इस छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है, 16-15 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है जबकि 8-8-8-7 वर्णों पर यति उत्तम होती है। इसके प्रवाह पर सम-विषम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसमें सभी वर्णों का मात्राभार निश्चित होता है और इस प्रकार इस छन्द की एक निश्चित मापनी होती है जिसमें 15 गाल के बाद एक गा आता है-
वर्णिक मापनी :
गालगाल गालगाल गालगाल गालगाल,
गालगाल गालगाल गालगाल गालगा।
यह वर्णिक मापनीयुक्त दंडक अथवा वर्णिक साधारण दंडक छन्द है किन्तु इसे पारंपरिक ग्रंथों में मुक्तक दण्डकों में सम्मिलित किया गया है।
यह लय-प्रवाह की दृष्टि से मनहर घनाक्षरी का एक उत्कृष्ट रूप है।
उदाहरण – सोचिए
सभ्यता कहाँ चली विचारणीय शोचनीय,
रीतिहीन नीतिहीन शीलहीन, सोचिए।
है न प्रेम, है न त्याग, है न भावना विशेष,
स्वार्थ से मनुष्यता हुई मलीन, सोचिए।
अर्थ-काम के लिए गवाँ रहे अनेक प्राण,
जी रहे अनेक लोभ के अधीन, सोचिए।
सत्य को असत्य सिद्ध जो करें वही मदान्ध,
दे रहे अनेक तर्क हैं नवीन, सोचिए। 3
4 जनहरण घनाक्षरी
इस छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है, 16-15 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है जबकि 8-8-8-7 वर्णों पर यति उत्तम होती है। इसमें विषम-सम-विषम का प्रयोग वर्जित होता है। इसमें सभी वर्णों का मात्राभार निश्चित होता है, इसके चरण की मापनी निम्न लिखित प्रकार है जिसमें 30 लघु के बाद एक गुरु आता है-
वर्णिक मापनी :
लललल लललल लललल लललल,
लललल लललल लललल ललगा।
यह वर्णिक मापनीयुक्त दंडक अथवा वर्णिक साधारण दंडक छन्द है किन्तु इसे पारंपरिक ग्रंथों में मुक्तक दण्डकों में सम्मिलित किया गया है।
इसके अंतिम गा के स्थान पर लल प्रयोग करने से एक प्रकार का डमरू घनाक्षरी छन्द बन जाता है। छन्द 26 और 50 की तुलना करने से यह बात अधिक स्पष्ट हो जाती है।
उदाहरण – निखर तू
विकल-विकल मन, सुनयनि तुझबिन,
प्रकट मनस पर, सँवर निखर तू।
हृदय पटल पर, प्रतिपल बस कर,
सुखकर सुखकर, अनुभव भर तू।
सँभल-सँभल कर, थिरक-थिरक कर,
लय-गति वश कर, पग-पग धर तू।
रुनझुन-रुनझुन, छनन छनन छन,
झनन झनन झन, पल-पल कर तू। 4
5 रूप घनाक्षरी
इस छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 32 वर्ण होते है, 16-16 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है जबकि 8-8-8-8 वर्णों पर यति उत्तम होती है, अंत में गाल अनिवार्य होता है, 8 वर्णों के पदों में विषम-सम-विषम प्रयोग वर्जित होता है।
यह वर्णिक मापनीमुक्त दंडक अथवा वर्णिक मुक्तक दंडक छन्द है।
मनहर के बाद यह घनाक्षरी का सवसे अधिक प्रचलित भेद है।
मनहर घनाक्षरी के चरणान्त में एक लघु बढ़ा देने से रूप घनाक्षरी बन जाती है।
उदाहरण – दिन चार
जीवन के दिन चार, कर लो सभी से प्यार,
रहो मत मन मार, लूटो खुशियाँ अपार।
खुशियाँ अपार वहाँ, प्यार पलता है जहाँ,
दुख का है नाम कहाँ, जहाँ बस प्यार-प्यार।
प्यार करो दिन रात, ऐसा कुछ करो तात,
खिल जायें जलजात, एक-दो नहीं, हजार।
हजार बिछे हों शूल, तुम बिखराओ फूल,
प्यार करो सब भूल, जीवन के दिन चार। 5
6 जलहरण/हरिहरण घनाक्षरी
इस छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 32 वर्ण होते है, 16-16 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है जबकि 8-8-8-8 वर्णों पर यति और अन्त्यानुप्रास उत्तम होता है, अंत में लल अनिवार्य होता है, 8 वर्णों के पदों में विषम-सम-विषम प्रयोग वर्जित होता है।
यह वर्णिक मापनीमुक्त दंडक अथवा वर्णिक मुक्तक दंडक छन्द है।
प्रस्तुत उदाहरणों के छन्द 34, 35, 36 और 37 में आतंरिक अन्त्यानुप्रास का प्रयोग किया गया है।
कुछ रचनाकार जलहरण के अंत में लगा भी प्रयोग करते हैं लेकिन तब पढने में उस लगा का उच्चारण लल ही होता है।
कुछ रचनाकार 8-8-8 वर्णों पर भी लल अनिवार्य मानते हैं, जैसाकि प्रथम उदाहरण में देखा जा सकता है लेकिन इस लेखक की दृष्टि में इसे अनिवार्य न मान कर उत्तम मानना ही उचित है।
उदाहरण – वीणावादिनी के सुत
वीणावादिनी के सुत, मिलते नशे में धुत,
दुःख लगता बहुत, देख उनका पतन।
देव लगें मंच पर, क्षुद्र मंच से उतर,
नाच नाचते उघर, देख होती है चिढ़न।
लड़ते पैसों के हित, वासना अपरिमित,
रहें रूप के क्षुधित, करें मर्यादा-हनन।
जो हैं सीधे सच्चे कवि, रखते विमल छवि,
वे तो हैं प्रणम्य रवि, मेरा उनको नमन। 6
7 कृपाण घनाक्षरी
इस छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 32 वर्ण होते है, 8-8-8-8 वर्णों पर यति और अन्त्यानुप्रास अनिवार्य होता है, चरणान्त में गाल अनिवार्य होता है, 8 वर्णों के पदों में विषम-सम-विषम प्रयोग वर्जित होता है।
यह वर्णिक मापनीमुक्त दंडक अथवा वर्णिक मुक्तक दंडक छन्द है।
यह छन्द वीर रस के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है।
छन्द 37 और 41 की तुलना करने से जलहरण और कृपाण का परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है।
रूप घनाक्षरी में यदि 8-8-8 पर यति और अन्त्यानुप्रास अनिवार्य कर दिया जाये तो वह कृपाण घनाक्षरी हो जाती है| इस प्रकार प्रत्येक रूप घनाक्षरी कृपाण घनाक्षरी नहीं होती है, किन्तु प्रत्येक कृपाण घनाक्षरी रूप घनाक्षरी भी होती है|
उदाहरण – शब्द
शिल्प का रहे विधान, भाव का ढहे मकान,
अक्षरों के खींच कान, रचिए न छंद मीत।
उर में हो दुष्चरित्र, छंद में आदर्श चित्र,
छलिए न छंद मित्र, याचना यही विनीत।
शब्द उर से उभार, जो जिया उसे उतार,
छंद रचिए निखार, पढ़िये सदा सप्रीत।
शब्द हैं लजीले फूल, शब्द हैं नुकीले शूल,
शब्द विषयानुकूल, लेते हैं हृदय जीत। 7
8. लगान्त विजया घनाक्षरी
विजया घनाक्षरी दो प्रकार की होती है- एक लगान्त जिसके अंत में लगा आता है और दूसरी नगणान्त जिसके अंत में ललल या नगण आता है।
लगान्त विजया घनाक्षरी में चार सम तुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 32 वर्ण होते हैं, 8-8-8-8 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है, 8-8-8-8 पर लगा आनिवार्य होता है, 8-8-8 पर अंत्यानुप्रास उत्तम होता है।
इसमें 8 वर्णों के पदों में विषम-सम-विषम प्रयोग भी मान्य होता है। इस विशेषता की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अग्रलिखित उदाहरणों में विषम-सम-विषम का प्रयोग प्रचुरता से किया गया है।
यह वर्णिक मापनीमुक्त दंडक अथवा वर्णिक मुक्तक दंडक छन्द है।
उदाहरण – भामिनी
नखत दिखे जागते, सपन दिखे भागते,
मदिर मधु पागते, निकल रही यामिनी।
बादल काले छा गये, युगल पास आ गये,
अनाड़ी मात खा गये, दमक गयी दामिनी।
पवन चली झूमती, मदिर मत्त घूमती,
दिशाएँ दस चूमती, अनोखी गजगामिनी।
न भाये वह यामिनी, न भाये वह दामिनी,
न भाये गजगामिनी, जो साथ नहीं भामिनी। 8
9. नगणान्त विजया घनाक्षरी
विजया घनाक्षरी दो प्रकार की होती है- एक लगान्त जिसके अंत में लगा आता है और दूसरी नगणान्त जिसके अंत में ललल या नगण आता है।
नगणान्त विजया घनाक्षरी में चार सम तुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 32 वर्ण होते हैं, 8-8-8-8 पर यति अनिवार्य होती है, 8-8-8-8 पर ललल अथवा नगण आनिवार्य होता है, 8-8-8 पर अंत्यानुप्रास उत्तम होता है।
इसमें 8 वर्णों के पदों में सम-विषम-विषम प्रयोग अनिवार्य होता है। यह एक विशेष बात है, इसलिए अग्रलिखित उदाहरणों में ध्यान देने योग्य है।
यह वर्णिक मापनीमुक्त दंडक अथवा वर्णिक मुक्तक दंडक छन्द है।
उदाहरण – नमन
नीति पर जो अटल, रहे धर्म से अचल,
सदा सेवा में चपल, करे दंभ का शमन।
चले सत्य की डगर, धरे सत्य ही अधर,
करे सत्य को मुखर, होता उसी का दमन।
मन रहता विकल, क्रोध पड़ता उबल,
उर जलती अनल, धैर्य करता गमन ।
उर वेदना अकथ, है न अंत ही न अथ,
चले फिर भी सुपथ, मेरा उसको नमन। 9
10. समात्रिक डमरू घनाक्षरी
डमरू घनाक्षरी छन्द दो रूपों में रचा जाता है- (1) समात्रिक डमरू जिसमें सभी 32 वर्ण लघु होते हैं जो इ, उ, ऋ की हृस्व मात्राओं से युक्त भी हो सकते हैं (ख) अमात्रिक डमरू जिसमें सभी 32 वर्ण लघु होते हैं जो मात्राओं से मुक्त होते हैं।
समात्रिक डमरू घनाक्षरी छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 32 वर्ण होते है, 16-16 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है जबकि 8-8-8-8 वर्णों पर यति उत्तम होती है। इसमें विषम-सम-विषम का प्रयोग वर्जित होता है। इसमें सभी वर्णों का मात्राभार निश्चित होता है, इसके चरण की मापनी निम्न लिखित प्रकार है जिसमें सभी 32 वर्ण लघु होते हैं जो समात्रिक भी हो सकते हैं-
वर्णिक मापनी :
लललल लललल लललल लललल,
लललल लललल लललल लललल।
यह वर्णिक मापनीयुक्त दंडक अथवा वर्णिक साधारण दंडक छन्द है किन्तु इसे पारंपरिक ग्रंथों में मुक्तक दण्डकों में सम्मिलित किया गया है।
उदाहरण – निखर प्रिय
विकल-विकल मन, सुनयनि तुझ बिन,
प्रकट मनस पर, सँवर निखर प्रिय।
हृदय पटल पर, प्रतिपल बस कर,
सुखकर सुखकर, अनुभव भर प्रिय।
सँभल-सँभल कर, थिरक-थिरक कर,
लय-गति वश कर, पग-पग धर प्रिय।
रुनझुन- रुनझुन, छनन छनन छन,
झनन झनन झन, पल-पल कर प्रिय। 10
11. अमात्रिक डमरू घनाक्षरी
डमरू घनाक्षरी छन्द दो रूपों में रचा जाता है- (1) समात्रिक डमरू जिसमें सभी 32 वर्ण लघु होते हैं जो इ, उ, ऋ की हृस्व मात्राओं से युक्त हो सकते हैं (ख) अमात्रिक डमरू जिसमें सभी 32 वर्ण लघु होते हैं जो इ, उ, ऋ की हृस्व मात्राओं से मुक्त होते हैं।
अमात्रिक डमरू घनाक्षरी छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 32 वर्ण होते है, 16-16 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है जबकि 8-8-8-8 वर्णों पर यति उत्तम होती है। इसमें विषम-सम-विषम का प्रयोग वर्जित होता है। इसमें सभी वर्णों का मात्राभार निश्चित होता है, इसके चरण की मापनी निम्न लिखित प्रकार है जिसमें सभी 32 वर्ण लघु होते हैं जो अमात्रिक होते हैं-
वर्णिक मापनी :
लललल लललल लललल लललल,
लललल लललल लललल लललल।
यह वर्णिक मापनीयुक्त दंडक अथवा वर्णिक साधारण दंडक छन्द है किन्तु इसे पारंपरिक ग्रंथों में मुक्तक दण्डकों में सम्मिलित किया गया है।
उदाहरण – बन कर सहचर
सरस सरस कह, वचन नमन कर,
तरल-तरल मन, पल-पल रख कर।
सनन सनन सन, मगन पवन सम,
रसमय सरगम, स्वर-स्वर भर-भर।
तपन न रख मन, जलन न रख मन,
तमस न रख मन, रसमय कर स्वर।
अटल अभय बन, सत-पथ पर चल,
कर-कर गह कर, बन कर सहचर। 11
12. देव घनाक्षरी
इस छन्द में चार समतुकान्त चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 33 वर्ण होते है, 8-8-8-9 वर्णों पर यति अनिवार्य होती है, चरणान्त में ललल अथवा नगण अनिवार्य होता है, 8 वर्णों के पदों में विषम-सम-विषम प्रयोग वर्जित होता है।
इसके चरणान्त में ललल की पुनरावृत्ति से विशेष लालित्य उत्पन्न होता है।
यह वर्णिक मापनीमुक्त दंडक अथवा वर्णिक मुक्तक दंडक छन्द है।
उदाहरण – वेदना
पालने को परिवार, श्रम करता अपार,
मानता नहीं है हार, घूमता नगर-नगर।
लूटते हैं धनवान, लुटता नियति मान,
श्रमिक असावधान, जाता है बिखर-बिखर।
तन शीत सहता है, धूप में दहकता है,
कुछ नहीं कहता है, रहता सिहर-सिहर।
पलती जो झुग्गियों में, सूखती अंतड़ियों में,
जाती वह झुर्रियों में, वेदना उभर-उभर। 12
– आचार्य ओम नीरव 8299034545