गोया
सुगबुगाहट सी है किसी के क़दमों की,
आज ना जाने क्यों फिर से इन फ़िजाओं में।
अनजाना सा चेहरा है फिर भी ना जाने क्यूँ,
पहचान लग रही मुझको सदियों पुरानी सी।
वक्त की चादर ने परतें कई बिछौं दी है,
धूल पड़ चुकी किताबों से सदा आ रही है कुछ-कुछ।
इक जो दास्ताँ रही थी अधूरी-अनकही कभी,
क्यूँ आज ये हवा उनकी फिर से याद दिला रही है।
मंसूबे तेरे अज़नबी “गोया”नज़र से दूर है मेरे,
इरादों को महसूस क्यों नही मेरी नज़र कर पा रही है।
देखे फिर से क्या ये मुलाकात रंग लाती है,
जिंदगी एक बार फिर से देख “सरिता” कितना तुझको आजमाती है।
#सरितासृजना