गुम हो रही हिन्दी
अंग्रेजी दिवस, फ्रेंच दिवस
या फिर मनाते चीनी दिवस
न देखा ,न सुना, न जाना
सिवाय हिन्दी के हिंदुस्तान में ।
हिंदी बनी घर की दासी ।
क्या फिक्र है हमें जरा सी?
कोमल हृदय मन मस्तिष्क में ,
चला रहे हैं हथौड़ा अंग्रेजियत के
जन्म से ही रिश्ते के शब्दों में
खो दिया मां- बाबूजी का प्यार।
अभिवादन में आशीष और दुलार।
नर्सरीे से ही क्लिष्ट भाषा से
जोड़ रहे हैं अबोध के
भविष्य की गाथा ।
मातृभाषा की अवहेलना कर
अपनाते तरह-तरह के हथकंडे ।
न्यूज़ पेपर , इंटरव्यू , नावेल,
राइम से मूवी तक वक्त बिताते।
सहज मुख टेढ़ा करते ,
कैसी झूठी शान दिखाते।
बन चुके हैं भाषाई खच्चर
हालत धोबी के कुत्ते सी
क्या ऐसे दिलाएंगे हिंदी को सम्मान?
जहां पल-पल अस्मिता लुटती
मिटती ,बिगड़ती हिन्दी की तस्वीर।
इसके बावजूद क्या सामर्थ्य है
विश्वभाषा बनने की?