गुमनामी
अभी एक शोर सा उठा है कहीं
कोई खामोश हो गया है कहीं।
हुआ कुछ ऐसा जैसे ये सब कुछ
इससे पहले भी हो चुका है कहीं ।।
क्या हुआ है तुझे, भूलता है चीजों को
रखता है कहीं और ढूंढता है कहीं ।
जो यहां से कहीं भी नहीं जाता था
वह यहां से चला गया है कहीं ।।
मैं तो अब किसी शहर में नहीं
क्या मेरा नाम अभी भी लिखा है कहीं?
किसी कमरे से कोई होकर के विदा
किसी कमरे में जाकर छुप गया है कहीं ।।
© अभिषेक पाण्डेय अभि