गुब्बारे वाला
गुब्बारे वाला
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डग मग डग मग डग मग,
डोल रही है वो पथ पर,
नगर नगर और डगर डगर,
घूम रही है चक्कर पर,
पैरों में चप्पल पहने है,
और देसी परिधान है,
आंखों पे काला मोटा चश्मा,
मूछें उसकी शान हैं,
सिर पर टोपी नेता वाली,
सदरी उसकी जान है,
देखो टन टन बजाता घंटी,
बच्चो का भगवान है।
कभी मुँह फुलाता,
कभी पिचकाता,
करतबी वो महान है,
हँसता और हँसाता है,
ऐसा वो इंसान है।
साईकल पे पीछे और आगे,
कई रंग बी रंगे गुब्बारे हैं,
हवा में ऐसे उड़ते है,
जैसे सबसे अनजान हैं।
गांव गांव और शहर शहर,
वो बांट रहा,खुशियों को भर भर,
इन छोटे छोटे गुब्बारों से,
बच्चों के मन को हर कर,
उनको ऊंची उड़ान दिखता,
ये हमारा गुब्बारे वाला।
©ऋषि सिंह “गूंज”