गुनगुनाने यहां लगा, फिर से एक फकीर।
गुनगुनाने यहां लगा, फिर से एक फकीर।
सबका माथा है जुदा, मिटती नहीं लकीर।।
राम चले वनवास को, त्याग अवध का धाम
धूं-धूं कर अभिमान की, लंका जली तमाम।।
ये उदाहरण सामने, किसकी क्या तकदीर
पैरों में है समय की, सबके ही जंजीर।।
सूर्यकांत