गुत्थियों का हल आसान नही …..
जीवन रहस्मय है इनकी गुत्थियां भी इन्ही की तरह रहस्मयी है प्रत्येक समस्या का निदान या गुत्थियों का हल एक नई प्रश्न के गुत्थियों को बुनता है जो देर -सबेर सुलझाने वाले के समकक्ष आ ही जाता है । ऐसा नही है कि यह गांठे इतनी अधिक हो जाये कि दिमाग भूसा हो जाये ,बिल्कुल नही यह दिमाग की नशों को केंद्रित कर उन्हें टटोल कर एक नई गुत्थियां बना लेती है । इनका उपाय यह हो सकता है कि इन्हें साथ लेकर धीरे -धीरे बारी -बारी से खोला जाए और इन पर मंथन नही तुरन्त ही प्रहार किया जाए तो शायद यह मकड़ी की जाले टूट जाये , अन्यथा मंथन से एक नई रहस्मयी गुत्थियां जन्म ले लेगी ।
‘गुत्थियों का निर्माण हमारे बार -बार इच्छाओं की पूर्ति और नई इच्छाओं के जन्म के बीच का प्रोसेस है ‘ और इस रहस्मयी जीवन के भांति इसमें पानी के अनुरूप बुल -बुला उठना लाजमी है ।
रहस्मयी जीवन की प्रक्रिया कैसी होगी ,ये खुले और छोटे चंक्षु से एवं मानव मस्तिष्क से पता करना लगभग एक नई गुत्थी है एक छोटे से पुरुष स्पर्म के अणु और महिला स्पर्म के अणु ने अपने साहचर्य से इस धरा पर विवेकशील और बलशाली जीव की उत्पत्ति की जो यह समझ के परे हैं कि कैसे उस स्पर्म ने मानवों में किडनी,गुर्दा,हृदय, और मस्तिष्क का निर्माण किया जबकि वह एक चिप-चिपा तरल पदार्थ है यह गुत्थियां नही है तो क्या है ।
अनेको गुत्थियां की श्रृंखला में मनुष्यों के द्वारा निर्मित समाजिक नियमो और प्रथाओं की गुत्थी तो सर्वोपरि है जिनसे केवल नई-नई गुत्थियो के रेशे ही जन्म लेते हैं और मनुष्य के जीवन की प्रांसगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं मजे की बात है मनुष्य की जीवन की प्रासंगिकता क्या है स्वयं में एक गुत्थी है ।
अतः हर एक समस्या गुत्थियों के अनुकूल है जिसका समाधान एक नई गुत्थियों को जन्म देता है यह जीवन के उस रहस्मयी सत्यों के अनुरूप है जिसका प्रत्येक उत्तर स्वयं में एक प्रश्न है ।
–rohit …