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29 Jan 2024 · 1 min read

पीले पात

पात पीले हो गए हम
पीत पत्तों की भला
कीमत कहाँ
बस किताबों के लिए
अस्तित्व अपना
किस लिए यूँ काँपते
उड़ते फिरें
क्यों नयन में साँस में
अटके घिरें

एक दिन सूखेंगे
और पतझड़ बनेंगे
पाँव के नीचे कुचल
पिसते फिरेंगे

पर शिकायत
वृक्ष से होगी न क्यों
कल तलक
हमसे ही उसकी
शान थी

आज जब हम
घिर गए जर्जर हुए
उसकी हरइक डाल-डाल
हमको हवा देने लगी

कब गिरें हम टूटकर
हर एक पत्थर कह रहा
और हम
लाचार पत्ते
बस हवाओं से डरें
देखते हैं
ये हवाएँ क्या करें

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