एक गीत लाया हूँ मैं अपने गाँव से (गीत )
एक गीत लाया हूँ मैं अपने गाँव से।
धूल भरी पगडण्डी पीपल की छाँव से।
शब्दों में इसकी थोड़ी ठिठोली है
भौजी ननदिया की यह हमजोली है
‘माई’ के प्यार भरल अँचरा के छाँव से।
लहराए खेतों में सरसो के फूल
ग्रीष्म, वर्षा, शीत सब मुझको क़बूल
कीचड़ में सने हुए हलधर के पाँव से।
खुला आसमान मेरा चाँद औ’ सितारे
पुरवइया बहती है अँगना दुआरे
मिट्टी के चूल्हे पर जलते अलाव से।
होत भिनुसार बोले सगरो चिरइया
अँगना में खूँटे पर रम्भाये गइया
कोयल के कुहू -कुहू कागा के काँव से।
एक गीत लाया हूँ मैं अपने गाँव से।