गीतों में मिल जाउंगी
तन्हाई भी तनहा होकर
आंसू आंखों में भर-भरकर
रो पड़ती होगी बरबस ही
सूनेपन से आहत होकर
टूट-टूटकर कतरा-कतरा
और सिसकते होंगे सपने
इस नीरवता का हासिल क्या
जो हैं अपने ..कितने अपने..
धुंधले मन के जुगनू बेदम
साहस कर उठते गिर जाते
घोर अंधेरे इन रस्तों पर
मरने तक को चलते जाते
ऐसा जीवन कब इच्छित था
कैसे जग का माली सींचे
ऐसा कैसा फेरा जिसमें
दुख ही आते दुख के पीछे
मृत्योत्सव इससे तो सुंदर
हर लेता हर दुख पीड़ा को
मृत्यु सुलाती गोदी अपनी
कितना सुख मिलता तब उर को
सुनो..जगत के जीव चराचर
दुख दुविधा से मुक्ति पाकर
जब सो जाऊं मैं चिर निद्रा
शोक नहीं करना तिल भर भी
तब खुशियों के ढोल बजाना
और प्रेम का रस बिखराना
तब सब करना जो इच्छित था
तनिक नहीं तुम अश्रु बहाना
अग्नि समर्पित होकर मैं तब
पंचतत्व मैं मिल जाउंगी
मुझे ढूंढना चाहो जब तुम
मैं गीतों में मिल जाउंगी
©
अंकिता कुलश्रेष्ठ