गीतिका-
गीतिका-
जीवन में व्यापार बहुत है।
झूठे का सत्कार बहुत है।।
नहीं समातीं आलिंगन में,
खुशियों का विस्तार बहुत है।
बस अपने का करे दिखावा,
स्वार्थ सना संसार बहुत है।
काँधे थैला बेकारी का,
युवा त्रस्त लाचार बहुत है।
एक यही चिंता है सबकी,
महँगाई की मार बहुत है।
उपालंभ दें किसे बताओ,
लोगों का उपकार बहुत है।
भले समीक्षक कमियाँ देखें,
हमको ‘कृति’ से प्यार बहुत है।।
डाॅ.बिपिन पाण्डेय