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12 May 2024 · 1 min read

गीतिका

आसमाँ की चाहत दिल में रखता रहा
मंजिलों से मुहब्बत कब से करता रहा

ख़्वाहिशें उड़ान को आतुर हैं कब से
फिर हर तूफ़ान से हर कसर भिड़ता रहा

हिम्मत भी अब तो फ़ौलादी हो गयी है
हर सिम्त आँधियों से हर कदम लड़ता रहा

बुझ गए दिए सारे साथ मेरे जो जले थे
बस अकेला अब तलक मैं ही जलता रहा

मानता हूँ कि लाख मुश्किलें आयीं
मुश्किलों को भेदकर मैं सदा चलता रहा

अनिल कुमार निश्छल

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