गिरेबान
लोग गैरों पर तो उंगली उठाते है ,
मगर अपना गिरेबान नही देखते है ।
अपना गुनाह देखने की फुर्सत नही ,
गैरों के लिए तो वक्त निकाल लेते है ।
उनको गर कोई दिखाना चाहे आईना ,
तो आईने को तोड़ने पर आमदा होते है ।
खुद को वो समझते है दूध का धुला,
गैरों को मैल से भरा हुआ समझते है ।
उन पर उठती खुद की तीन उंगलियां ,
गर वो एक भी उंगली गैरों पर उठाते है ।
मगर ये राज वो कहां जानते है क्योंकि ,
अपनी ओर मुड़ी उगलियां नहीं देखते है !
खुदा ने कुछ सोचकर ये निजाम बनाया,
मगर यह इंसानों के गुरुर कहां समझते है ।
गुरुर कभी भी अपनी ओर नहीं देखता ,
तभी आईने को लोग खुद से दूर रखते हैं।
गैरों के दोष देखने से पहले खुद का देखे ,
ऐसे इंसान ही “ए अनु” फरिश्ते होते है ।