‘ग़ज़ल’
चलो धीमे कि सुंदर से, नजारे टूट जाते हैं।
लगी ठोकर फिसलकर के, पिटारे टूट जाते हैं।।
अकेले हो रखो आशा, निराशा से बनेगा क्या।
निरंतर कुछ करोगे तो, सितारे टूट जाते हैं।।
गरीबों को सहारा दो, इशारा नेक प्यारा दो।
बिना मजबूत बंधों के, पनारे टूट जाते हैं।।
रखो व्यवहार कोमल तुम, सदा सम्मान दो सबको।
बुरे आचार के कारण, हमारे टूट जाते हैं।।
बुराई की बुरी लत से, रखो तुम दूर अपने को।
अधिक पानी बरसने से, किनारे टूट जाते हैं।।
गिरेबां में कभी झाँको, तभी तुम जान पाओगे।
अधिक बोझा बढ़ाने से, सहारे टूट जाते हैं।।
बनो चट्टान मुश्किल में, सदा ही याद यह रखना।
हुए पीले हैं जो पत्ते, वो सारे टूट जाते हैं।।
-गोदाम्बरी नेगी