ग़ज़ल
बात पे मेरी तु तो हँसता बहुत है
सच कहूं तो यार तू अच्छा बहुत है
देख कर मुझे गिरा दे ख़म-ए-अबरू
उफ्फ, मेरे यार का नख़रा बहुत है
दरिया में बहता पानी भी कम है लेकिन
आँख में इक बूँद भी ठहरा बहुत है
पिछले ही इतवार देखा था तुझे तो
सात दिन में यार तु बदला बहुत है
इस कदर भी लापरवाही न करो तुम
हर इक शय में जान का खतरा बहुत है
क्युं करूं ज़ाया ग़ज़ल मैं ख़ामखा ही
बेवफा पे यार इक मिसरा बहुत है
~Nitin Pandit