ग़ज़ल
दोस्त भी दुश्मन को लिए साथ आ गए।
जितने थे दर्द साथ मुझे रास आ गए।
आंखों को भी सुकून मिला दिल को भी सुकून।
वह दिल में बनके जब से मेरे खास आ गए।
हैरत है कोई संग मलामत नहीं बरसा।
सब संगबाज़ कैसे भला बाज़ आ गए।
मुझसे छुपा रहे थे जो मेरी ही बात को।
वह खुद बताने मुझको अपने राज़ आ गए।
सबसे दूर रहते थे मुझसे भी दूर थे।
न जाने किस तरह वह मेरे पास आ गए।
ऐलान हुआ जब से इमदाद सरकारी।
कासा लिए हुए सभी मोहताज आ गए।
आप सगीर उड़ना खुले आसमान में।
अब तो कबूतरों में भी कुछ बाज आ गए।