ग़ज़ल
देर शब तक जागना अच्छा नहीं
तीरगी से जूझना अच्छा नहीं
ये निगाहें मार डालेंगी मुझे
आपका यूँ देखना अच्छा नहीं
बोलने से पहले सोचा कीजिए
थूक कर फिर चाटना अच्छा नहीं
जल रहा हो घर पड़ोसी का अगर
हाथ अपना सेंकना अच्छा नहीं
दाग़ जो हैं आपके रुख़सार पर
आइने में ढूँढना अच्छा नहीं
ज़िन्दगी भर जिसपे तुम चलते रहे
कहते हो वो रास्ता अच्छा नहीं
टूटते हैं पंख तो टूटें मगर
हौसले का टूटना अच्छा नहीं
लोग तिल का ताड़ कर देते हैं ‘नूर’
सबसे हँस कर बोलना अच्छा नहीं
✍️ जितेन्द्र कुमार ‘नूर’
असिस्टेंट प्रोफेसर
डी ए वी पी जी कॉलेज आज़मगढ़