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23 May 2020 · 1 min read

छंदमुक्त कविता

ठोकरें लगने पर भी उठना पड़ता है,
खुशी के लिए बहाना ढूंढ़ना पड़ता है।

मुहम्मद (स.अ.)बुध्द, महावीर बनने के लिए,
घर छोड़ दर-बदर घूमना पड़ता है।

जिन्दगी भर बना रहे रिश्तों में मिठास,
कड़वी बातों को भूलना पड़ता है।

खुबसूरत लिबास से पूछकर के देखें,
कितनी बार सुई से चूभना पड़ता है।

अकेले तो मंजिल तक पहुंच ही जाते,
पिछे अपनों के लिए रुकना पड़ता है।

यूं ही कदमों तले जन्नत नआता “नूरी”
परवरिशे औलाद बेवक्त उठना पड़ता है

नूरफातिमा खातून “नूरी”
23/5/2020

Language: Hindi
1 Like · 291 Views
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