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7 Jun 2021 · 1 min read

ग़ज़ल/नज़्म – मज़मा भा गया

(ग़ज़ल/नज़्म – मज़मा भा गया)

गालियाँ देता, हर वो मज़मा भा गया,
तेरे नाम संग, जिसमें मेरा नाम आ गया ।

सुनता हूँ सबके-सब, तंज़ मैं चाव से,
एक-एक गहरा घाव, मजबूत बना गया ।

जान लेने को आतुर है, हर वो शख्स,
आशिकों पे जो अपनी, नज़र गड़ा गया ।

इतना ना मरा कर, मुझपे तू जानेमन,
मेरे साथ तेरा आना, सबको जला गया ।

गहरा समंदर प्यार का, लगे शान्त मगर,
तैर हिफाजत से ये, आशिकों को खा गया ।

सबकी किस्मत कहाँ, किस्सागोई होना,
कोई फकीर या दीवाना, किस्सा बना गया ।

खेल ये खेल “खोखर”, बेपरवाह अंजाम से,
इसमें हारने वाला भी, जीतकर आ गया ।

(किस्सागोई = किस्से-कहानियाँ जो सुनने में सच लगे और कल्पना को पंख लगा दे)
(किस्सागो = कहानी लेखक, किस्से-कहानियाँ सुनाने वाला)

©✍?16/12/2020
अनिल कुमार (खोखर)
9783597507
9950538424
anilk1604@gmail.com

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