ग़ज़ल/नज़्म – मज़मा भा गया
(ग़ज़ल/नज़्म – मज़मा भा गया)
गालियाँ देता, हर वो मज़मा भा गया,
तेरे नाम संग, जिसमें मेरा नाम आ गया ।
सुनता हूँ सबके-सब, तंज़ मैं चाव से,
एक-एक गहरा घाव, मजबूत बना गया ।
जान लेने को आतुर है, हर वो शख्स,
आशिकों पे जो अपनी, नज़र गड़ा गया ।
इतना ना मरा कर, मुझपे तू जानेमन,
मेरे साथ तेरा आना, सबको जला गया ।
गहरा समंदर प्यार का, लगे शान्त मगर,
तैर हिफाजत से ये, आशिकों को खा गया ।
सबकी किस्मत कहाँ, किस्सागोई होना,
कोई फकीर या दीवाना, किस्सा बना गया ।
खेल ये खेल “खोखर”, बेपरवाह अंजाम से,
इसमें हारने वाला भी, जीतकर आ गया ।
(किस्सागोई = किस्से-कहानियाँ जो सुनने में सच लगे और कल्पना को पंख लगा दे)
(किस्सागो = कहानी लेखक, किस्से-कहानियाँ सुनाने वाला)
©✍?16/12/2020
अनिल कुमार (खोखर)
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