ग़ज़ल/नज़्म – उसके सारे जज़्बात मद्देनजर रखे
उसके सारे जज़्बात मद्देनजर रखे,
जहां के सारे सवालात मद्देनजर रखे।
हमारे दरमियाँ क्या है मैं जानूं, वो जाने,
उसके भी सारे हालात मद्देनजर रखे।
ये गाँव का प्यार है सरेआम ना हो,
छोटे-बड़े झंझावात मद्देनजर रखे।
ताला ना लग जाए उसकी मुस्कानों पे,
ज़माने के इल्ज़ामात मद्देनजर रखे।
गुफ्तगू में उसे देर लग रही तो लगे,
उसके सारे खयालात मद्देनजर रखे।
छोटे-छोटे मिलन भी लगें कायनात से,
कैसी हो हर मुलाकात मद्देनजर रखे।
प्यार की डगर में काँटे जल्दी हैं उगते,
आशिकों के तजरबात मद्देनजर रखे ।
चाहतों के हर पल छपते रहे दिलों पे,
पुराने ना हों कागज़ात मद्देनजर रखे ।
जुस्तजू है कि उनका मुसाहिब रहूँ मैं ‘अनिल’,
दोनों दिलों के ताल्लुकात मद्देनजर रखे ।
(मद्देनजर = जो नज़र या निगाह के सामने हो)
(खयालात = ख्याल, अनेक विचार, विचारधारा)
(कायनात = सृष्टि, जगत, ब्रह्मांड, संसार, विश्व)
(तजरबात = तजुर्बात, तजुर्बा का बहुवचन, अनुभव, परख)
(जुस्तजू = आकांक्षा, इच्छा)
(मुसाहिब = कुलीन, सम्मानित, बड़े व्यक्ति के पास उठने-बैठने वाला, राजा का परामर्शदाता, ख़ुशामदी)
(ताल्लुकात = मेल-जोल, सम्बन्ध)
©✍🏻 स्वरचित
अनिल कुमार ‘अनिल’
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