ग़ज़ल : कौन आया है ये मेरे आशियाने में
कौन आया है ये मेरे आशियाने में
रात भर जगते रहो इसको सुलाने में
जूट की बोरी से ये कुटिया बनाई है
तुम चले आते हो मुफ़लिस के घराने में
मेरी नम आँखों में सावन देखते हैं ये
उम्र भर रोते रहो इनको हँसाने में
कुछ नहीं है ज़िंदगी बर्बाद है अब तो
मर गया हूँ मैं मुहब्बत को मनाने में
कैसे भी गर हो सके मुझको रिहा कर दे
रह नहीं सकता मैं अब इस क़ैद-ख़ाने में
भूख ने तोड़ा है ये मेरा बदन कुछ यूँ
दर्द अब होने लगा रोटी चबाने में
जेब में धेला नही है हाल है बेहाल
आज फिर हड़ताल है इस कारख़ाने में
पेट अपना बन गया अपने लिए जंजाल
पिस गया हूँ आज फिर गेहूँ पिसाने में
आज मेरे बाल बच्चे हो गए बेघर
क्या मिला तुमको मुझे यूँ आज़माने में