बदलाव
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बारिश इस बार बरसती है खार सी
तल्ख़ी इसकी भी बड़ गई इंसान सी
हम भी नहाते थे तो तुम भी नहाए
पानी में तब ख़लिश न थी इस बार सी
पंछी उड़ बैठते कभी मंदिर कभी मस्जिद
जगह की पहचान नहीं इन्हें तो इंसान सी
ज़िंदगी ने मायने अपने इस तरह बदले
मौत भी लगने लगी अब तो इनाम सी
वायदे एक दूसरे को निभाने के ले रहे हैं लोग
मोहब्बत है या हो रही तिजारत सामान की
डा राजीव “सागरी”