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28 May 2021 · 1 min read

गहरा राज़

ना जाने कैसा होता होगा वो जहां,
खो जाते हैं इंसान कैसे जाकर वहां ।

ना राह का पता न मंजिल का ठिकाना ,
आखिर अंजाने सफर का मुकाम है कहां ?

अपनो से सारे बंधन तोड़के ,मुंह मोड़के ,
ना जाने कहां बसा लेते हैं नया आशियां ।

ना खत ना पैगाम का सिलसिला रहता है,
आखिर कैसे करें अपना हाल ए दिल बयां।

रह रह कर दिल में कसक उठती है हमारे ,
नजरें तलाशती है जब कभी उनके निशान ।

आहिस्ता आहिस्ता वक्त भर ही ,देगा जख्म ,
बस इतनी सी तो है हमारी इंतजार ए इंतेहा ।

ये कजा अपने आप में एक गहरा राज़ है कोई ,
नहीं जान सकता “ए अनु” इसे कोई इंसान ।

4 Likes · 6 Comments · 389 Views
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