गरीबी और लाचारी
“गरीबी और लाचारी”
गरीबी और तंगहाली के कैसे कैसे रंग हैं,
कोई मर रहा भुखमरी में तो कोई पैसों से तंग है।
मजबूरियां गरीब बच्चे को भी जिम्मेदार बनाती हैं,
चाहे कितनी लाचारी हो कमाना सिखाती है।
गरीब इंसान मजबूरी के हाशिए पर चलता है,
अमीर तो बाप कमाई की अय्याशियों पर पलता है।
कुछ शराब के प्याले छलकाते अल्हड़ जवानी में,
तो कुछ अपनी प्यास बुझाते नदी नालों के पानी में।
दो वक्त की रोटी के भी कुछ को लाले पड़ जाते हैं,
कुछ लोग तो सोने चांदी के थाली में खाते हैं।
किसी के पास सर छुपाने को छोटी जगह नहीं,
किसी के बंगलों के लिए छूटी कोई जगह नहीं।
हे ईश्वर ये तेरा कैसा इंसाफ तेरी कैसी माया है,
कुछ खाली हाथ रह जाते कुछ ने सिर्फ पाया ही पाया है।।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर, रायपुर छत्तीसगढ़