गद्दार
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
हिन्दू हो या मुस्लिम हो, सिख इसाई कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
गले लगाया हमने सबको, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
बने किसान करी गद्दारी, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
बांट रहे थे काजू किसमिस, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
निर्लज्ज हमारे अपने थे, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
बिके हुए थे हलवे पर, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
बोल रहे थे मोदी को, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
मन ही मन सब खुश थे इनके, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
देखा रूप है अंदर का, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
यही रूप दिखलाने को, शांत पड़े थे मोदी जी।।
गद्दारों को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।
जयचंदो को गद्दार कहेंगे, चाहे फिर वो कोई भी हो।।
——-‐———————————————————–
“ललकार भारद्वाज”