गति साँसों की धीमी हुई, पर इंतज़ार की आस ना जाती है।
गति साँसों की धीमी हुई, पर इंतज़ार की आस ना जाती है,
दरवाजे पर टिकी ये नज़र, उम्मीदों के दीये जलाती है।
छोड़ गया था ये कहकर, मेरी दुनिया तू हीं बसाती है,
क्या उस तन्हा माँ की याद, तुझे इक पल को ना सताती है।
गोद को मेरी रोता था कभी, बातें तेरी अब रुलाती है,
तेरे जीवन के किसी कोने में, मुझे जगह कहाँ मिल पाती है।
आज भी तेरे क़दमों की आहटें, मेरे घर को महकाती है,
पर तेरे घर की दहलीज़, मुझे कहाँ अपनाती है।
थाल तेरी जब भरती हूँ तो, क्षुधा मेरी मिट जाती है,
पर तेरी थाले मेरे लिए, खाली क्यों रह जाती है।
बिन तेरे त्योहारों में वो, रौनक अब कहाँ आती है,
पर तुझे अब मेरे हक़ में, फुर्सत कहाँ मिल पाती है।
जन्म से तेरे पूर्ण हुई जो, वो पूर्णता मुझे लुभाती है,
पर परिवार की तेरी आधारशिला ये, मुझे अदृश्य कर जाती है।
आंसू की अब धार रुकी है, उम्मीदों की जली बाती है,
आँखें खुली सी ताक रही पर, सांस कहाँ अब आती है।
शवदाह कर अब सिसक रहा, की माँ तेरी याद रुलाती है,
परिवार में तेरे कभी जगह नहीं थी, वहाँ तस्वीरें मेरी मुस्काती है।