*गठरी बाँध मुसाफिर तेरी, मंजिल कब आ जाए ( गीत )*
गठरी बाँध मुसाफिर तेरी, मंजिल कब आ जाए ( गीत )
■■■■■■■■■■■■■
गठरी बाँध मुसाफिर तेरी, मंजिल कब आ जाए
(1)
बहुत -दूर से यात्रा करके ,घूम – घाम के आया
तेरी ट्रेन गई जग भर में ,तुझको खूब घुमाया
गिनती कर सामानों की ,कुछ देखो छूट न पाए
(2)
अपनी – अपनी बारी पर सब, यात्री रहे उतरते
कुछ हँसते कुछ रोते कुछ, निर्भय कुछ डरते-डरते
कितने उतर चुके हैं अब तक ,जाने कितने आए
(3)
कुछ यात्रा में रहे झगड़ते ,कुछ रहते मुस्काते
कुछ स्वार्थों में जीते कुछ, औरों के काम कराते
जिसका टिकट जहाँ का जैसा, वहाँ ट्रेन पहुँचाए
गठरी बाँध मुसाफिर तेरी, मंजिल कब आ जाए
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451