गजल सी रचना
वैसे तो हम अक्सर खामोश रहते हैं।
सुनते हैं ज्यादा अपनी कम कहते हैं।।
हम उन बादलों से नहीं ऐ दोस्त, जो।
बरसते कम गरजते ज्यादा रहते हैं।।
आते ही छा जाते हैं जो महफिल में।
हम ऐसी हस्तियों में शामिल रहते हैं।।
लाते हैं मुस्कराहट सबके चेहरों पर।
बात महफिल में इस अदा से कहते हैं।।
कोई कहता दीवाना कोई कहे शायर।
हम सादगी से खुद को मसखरा कहते हैं।।
गम को छुपाये रखते हैं हँस के सीने में।
“कंचन” हम यूं जिंदगी का दर्द सहते हैं।।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार) ।
दिनांक :- २७/११/२०२१.