“ख्वाहिश”
गॉंव में मदारी आया। डमरू के डम-डम की आवाज सुनकर बच्चे, बूढ़े, जवान, नर-नारी सब इकट्ठे हो गए। खेल चालू हुआ।
मदारी- ऐ शम्भुक, तुम्हें क्या बनाया जाए?
शम्भुक – ऑप्शन क्या है?
मदारी – इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, नेता, शिक्षक, इंसान और पागल?
शम्भुक – मुझे पागल बना दो।
मदारी – अरे क्या बकता है? तुम पागल क्यों बनना चाहता है?
शम्भुक – पागल को छोड़कर सब कुछ बनकर देख चुका हूँ।
मदारी – दोबारा बनने में क्या बुराई है?
शम्भुक – इंजीनियर बनकर खराब मटेरियल लगाकर बिल्डिंग और पुल-पुलिया फिर से क्यों गिराऊँ? डॉक्टर बनकर किडनियों की चोरी फिर क्यों करूँ? वकील बनकर सच को गलत क्यों सिद्ध करूँ? नेता बनकर बड़े-बड़े घोटाले क्यों करूँ?
मदारी – फिर इंसान बनने में क्या बुराई है?
शम्भुक – इंसानों ने ही तो महिलाओं की आबरू लूटी, हमले किए, बम ब्लॉस्ट भी किए। इन सबसे बेहतर है कि मुझे पागल ही बना दो।
मेरी प्रकाशित लघुकथा संग्रह :
मन की आँखें (दलहा, भाग-1) से
लघुकथाएँ दलहा भाग-1 से 7 में संग्रहित हैं।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक