ख्वाब पलना चाहिए
जिन्दगी में इक सुनहरा ख्वाब पलना चाहिए
लग गयी ठोकर तो’ क्या फिर से सँभलना चाहिए
उम्र का कोई न बंधन सीखना है जिन्दगी
लोग बदलें या न बदलें खुद बदलना चाहिए
कैद होकर घर में’ कब तक आप रहिएगा यहाँ
शाम को इक बार तो घर से निकलना चाहिए
और कितने दर्द देगी जिन्दगी हमको यहाँ
ये अँधेरी रात गम की अब तो’ ढलनी चाहिए
जब कभी भी आँच आये मान पर सम्मान पर
तब हमारा रक्त थोड़ा तो उबलना चाहिए
बैठकर बातें करो ये लात घूंसे छोड़ दो
बातों’-बातों में न हमको यूँ उछलना चाहिए
पीठ पीछे वार पर रखिये सदा तीखी नजर
दाल दुश्मन की यहाँ पर अब न गलना चाहिए
रुख हवाओं के बदलिए, तब तो’ कोई बात है
साथ सबके भीड़ बन यूँ ही न चलना चाहिए
आदमी से आदमी क्यों दूर होता जा रहा
बर्फ रिश्तों पर जमीं जो,अब पिघलनी चाहिए