“खैरात”
“खैरात”
खैरात में तो मोहब्बत भी फिजूल है,
हक से मिले तो नफ़रत भी कबूल है।
महज दस्तूर निभाने खैरात मत दो,
अगर दिल से दो तो धूल भी फूल है।
“खैरात”
खैरात में तो मोहब्बत भी फिजूल है,
हक से मिले तो नफ़रत भी कबूल है।
महज दस्तूर निभाने खैरात मत दो,
अगर दिल से दो तो धूल भी फूल है।