खेत -खलिहान
जहाँ बैठ कर रची गयी थी, एक कथा गोदान की
चलो करें कुछ बातें यारों, उन्हीं खेत खलिहान की
जहाँ खेलती खेल लहरियाँ, खेलें सँग-सँग झरने
ताल तलैया सोन चिरैया, देश धरा के गहने
दोमट हो या काली मिट्टी, उपजाऊ कहलाती
सरसों गेंहू चना मटर पर, अपना प्यार लुटाती
खूब झूमता धान जहाँ है जब बहती पुरवाई
ज्वार – बाजरा मक्का लहके, सरसों की सरसाई
पावस देख पपीहा बोले, देखो खुशी किसान की
चलो करें कुछ बातें यारो, उन्हीं खेत खलिहान की
जहाँ आम्रकुंजों में छिपकर कोयल कूक लगाती
राग भैरवी छेड़ सुबह में सबको रोज जगाती
पनघट पर पनिहारिन मिलतीं, काढ़े घूँघट पट का
रुनुक-झुनुक पायल खनकातीं, लिए शीश पर मटका
कर दे जहाँ दिशाएँ सुरभित ,जब ले पवन झकोरा
रुत बरखा की प्रीत सुहानी, चमके बादल गोरा
शिव मंत्रो के साथ जहाँ पर, गूंजे सदा अज़ान की
चलो करें कुछ बातें यारों, उन्हीं खेत खलिहान की
समय चक्र है बदला यारों, खेत दिखें अब बंजर
कृषक शहर को करें पलायन, बदल गए सब मंजर
कहते थे सोने की चिड़ियाँ, बीत गयीं वो सदियाँ
कभी बही थी जहाँ धरा पर, दूध दही की नदियाँ
आम नीम सब बौरायें पर, उनमें गन्ध नहीं है
महल – अटारी सुविधाएँ पर वो आनन्द नहीं है
जिसमें निश्छल प्यार पला था गिरते उसी मकान की
चलो करें कुछ बातें यारों, उन्हीं खेत खलिहान की
नष्ट हुईं वें शस्य श्यामला, धरती की सौगातें
चन्दा मामा लाते थे जब, खिली चाँदनी रातें
जनसख्या विस्फोट हुआ यूँ, खेत घटे हैं सबके
खेती योग्य जमीनों पर ही, नगर बसे हैं जम के
उजड़े खेत बगीचे उजड़े, सूखी ताल – तलैया
बागों से हरियाली गायब, गायब अब गौरैया
नदिया झरने खगकुल कलरव सुंदर सुखद विहान की
चलो करें कुछ बातें यारों, उन्हीं खेत खलिहान की
नाथ सोनांचली