Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 May 2024 · 11 min read

खुशी या ग़म हो नहीं जो तुम संग।

खुशी या ग़म हो नहीं जो तुम संग।
जरा बताओ क्या कम सितम है।
नज़र तुम्हारी कहे यह मुझसे।
जिगर में बसता तुम्हारा गम है।।—खुशी

बदल गयी जिंदगी की रंगत।
मिली नज़र फिर जिगर बेदम है।
जुबान भूली गजल के मिसरे।
नयन बरसते दीदार नम है।।—खुशी

अलग हैं राहें अलग हैं मंजिल।
सफ़र नया है नया कदम है।
भुलाये पल वो जिया जिन्हें था।
नहीं अकेला बढ़ाया दम है।।—खुशी

मिला वहीं जो बदा था किस्मत।
बहुत ही ज्यादा दिखाया कम है।
सितारे नभ में खिले हैं लेकिन।
छुपा सुधाकर तभी तो तम है।।—खुशी

लगी हैं बंदिश बहारे गुलशन।
भँवर भटकता नहीं शर्म है।
दीदार गुल के मिले जो पलभर।
चुभन देव दिल सहे धर्म है।।—खुशी
नारी
इतना निष्ठुर नारी होती कभी नहीं जाना था।
कंज सरीखी कोमल सुंदर यही सत्य माना था।
रूप अनोखा मनभावन है विरल गिरी से भारी।
फूलों की ज्यों रंग बिखरे कलरव सुर गाना था।।

बिखरे तो वो सँभल न पाये तरुवर की कलियों-सी।
थाम हाथ जब कदम मिलाये बजती है फलियों-सी।
मादक है मन को मोहती है भरती है मन जीवन।
खूब सुरीली पावन परिमल गूँज रही गलियों-सी।।

गीतिका प्रेम

प्रीत – प्रण पाल ले।
जीत मीत काल ले।।

दीप जिंदगी जला।
आंधियाँ सँभाल ले।।

ख्वाहिशें अनन्त हैं।
तोष का जमाल ले।।

भूल द्वार – द्वेष के।
नेह – पंथ ताल ले।।

बेचता ज़मीर क्यों।
काट चाह-जाल ले।।

शब्द – तीर तेज है।
देव तोल गाल ले।।

🌹 मनमीत बताओ 🌹
हाथ नहीं पल साथ तो दे दो
नीर नहीं बस प्यास ही दे दो
यूँ चुपचाप रहो न अब तुम
चैन नहीं अभिशाप तो दे दो।।

भाव भरी कोमल भारी है।
वो कब किससे ही हारी है।
प्रेम झुकाता सहज भाव से।
मही हिला देती नारी है।।

नदी नहीं जो बहती जाओ।
नहीं कहानी कहती जाओ।
सुनो सुहानी हो जिंदगानी।
सदा महकती रहती जाओ।।

सच को कैसे झूठ बना दूँ।
अपने को फिर कहाँ फना दूँ।
कहते हो सच नहीं सुगम है।
तारे दिन में कहो तना दूँ।

जाल फँसी मछली मुरझाती।
नीर मीत से नयन लड़ाती।
दूर रहे कैसे जी पाये।
तोड़ तार पर वो कब पाती।।

माना कुछ संबन्ध नहीं है।
व्यर्थ मगर यह बंध नहीं है।
हो पिछले जन्मों का चाहे।
झूठा यह अनुबंध नहीं है।।

चाँद रात को ही चमकाता।
गगन दिवस में कब मुरझाता।
देख रीत यह बड़ी पुरानी।
एक दिन चाँद नजर दिन आता।।

फूल चमन में ही सुख पाते।
धूल लगे पल में मुरझाते।
मगर कभी ऐसा भी होता।
विजन खिले मन खूब लुभाते।।

मिले नहीं अब तक तो क्या है।
मन से चाहा यह सच राह है।
जो बीती सब बात भुला दो।
याद यही अब कंठ लगा दो।
रीत यही है मीत पुरातन।
कहूँ यही बस इसे निभा दो।।

लघु दीपक बन जलता जाऊँ।
रात-दिवस बस चलता जाऊँ।
हारूँ नहीं कभी खुद से बस।
प्रीत नूर पा पलता जाऊँ।।

मन जाने मन की सब बाते।
जागे पीर तभी लब गाते।
प्रीत बिना सूना जग सारा।
करुणा सुनकर ही रब आते।।

मीत जिंदगी ईश दया है।
प्रेम पुरातन पंथ नया है।
नभ अनन्त तारे हम सारे।
धूल मिला वो खिला रहा है।।

मुक्तक
ये कैसा सत्य है दोनों खफ़ा हैं।
मगर सच। है यही ना वेवफ़ा हैं।
सही अपनी राह पर बेखबर हो।
कहो इसमें किसी की क्या जफ़ा हैं।।

कदम बढाओ प्रीत पंथ पर।
यही लिखा पढ़ सभी ग्रंथ पर।
वाल्मीकि , तुलसी , मीरा हो।
सूर – सूर जगमग सुपंथ पर।।

दोहे
दुर्लभ है जग में मिले , सुजन सहज ही प्रीत।
पीर सही घनघोर है , जाँच परख लो रीत।।

रची अनेकों पोथियाँ , विकल हृदय ने मीत।
जब-जब रोया प्रेम है , बहे अनोखे गीत

दूर नहीं मन से कभी , हुआ प्रेम है मीत।
घन छाते दो पहर ही , भानु गगन संगीत।।

मुक्तक विविध
रोशनाई प्रीत की काजल नहीं है।
बूँद से घबरा उठे बादल नहीं है।
जानता जिसको लगा यह रंग देखो।
रेख पाहन पर खिंची पागल नहीं है।।

तेरी चाहत में हमको वो मिला है।
जमाने से नहीं कोई गिला है।
खुले हैं बंद दरवाजे जहां के।
सुमन जैसे सुजन जीवन खिला है।।

🌹दोहे 🌹
तार बिना ही जुड़ गये , हुआ गजब का खेल।
झिलमिल होती जिंदगी , सुजन समझ ले मेल।।

आग बिना धुआँ उठा , जला जिगर का बाग।
रुक-रुक लपटे उठ रही , नहीं दिखते दाग।।

मिले तन-मन खिले , हुई अनोखी प्रीत।
नयन खुले सब कुछ लुटे , समझ न आयी रीत।।

नयन समायी नींद-सी , बिसर गयी हर बात।
चाह यही मन में जगी , बीत न जाये रात।।

मुक्तक
सबल को बल सभी देते नहीं निर्बल बने साथी।
बढाती है हवा ज्वाला बुझा देती सदा बाती।
बढ़ाकर हाथ अब अपना लगा लो कंठ से पगली।
बदल दो रीत सदियों की प्रकृति गीत नव गाती।।

🌹प्रेम लगन🌹
हर पल यादों में जीता हूँ।
उनके बिन बिल्कुल रीता हूँ।
दूर हूँ लेकिन दूर नहीं तुम।
हार – हार कर भी जीता हूँ।।

गीत नहीं है मीत जिंदगी।
हार नहीं है जीत जिंदगी।
प्रेम पथिक पथ पल पहचाने।
प्यार बना दे गीत जिंदगी।।

खोल दिल के पाट आजा।
हो रही बरसात आजा।
टूटता है छोर मन का।
झूलते जज्बात आजा।।

माना मन के मीत नहीं हो।
कुछ तो हो मनजीत नहीं हो।
यूँ ही कब किससे बनते हैं।
सुर तो हो बस गीत नहीं हो।।

चंद लम्हों के मिलन ने मन लिया पहचान है।
गीत है अनजान लेकिन तान से पहचान है।
जन्म-जन्मों से कभी तो है मिलन नादान हम।
यूँ कभी होती नहीं देखे बिना पहचान है।।

इतना जहर नहीं डाला है।
मुख पर जड़ा हुआ ताला है।
खता यही चाहा है तुमको।
मगर भ्रम क्यों मन पाला है।।

मिलते थे केवल बातों में।
खिला चाँद जैसे रातों में।
किरण-भाव मन छू लेती थी।
विलग झूमते अब रातों में।।

प्रीत का आधार है विश्वास ही।
दूर होकर जो सदा है पास ही।
चाँद में ज्यों चाँदनी की लहर है।
हर घड़ी मन में मिलन की आस ही।।

हर घड़ी चातक बना , निरखूँ तुम्हारी राह ही।
लाख चाहा खोजना , पाया नहीं मन थाह ही।
नील नभ में ही रहो , पर नैन-दीपक जगमगे।
बात बादल की नहीं , दो बूँद की है चाह ही।।

प्रीत क्यों
दूर जा या गले से लगा ले मुझे।
आग में हूँ जला आजमा ले मुझे।।
हाँ सही है यही हूँ हवा प्यार की।
अंग अपने लगा गुदगुदा ले मुझे।।

बूँद हूँ प्यार की चाह है बस यही।
गोद सागर रहूँ अब बहा ले मुझे।।
है नहीं आरजू चूम लू लब सनम।
फूल हूँ बेनियों में सजा ले मुझे।।

कब चाँद मिला है हर किसी यहाँ।
रश्मियों से जरा जगमगा ले मुझे।।
देख चातक बना मन भटकता फिरे।
देव दो बूँद देकर मना लो मुझे।।

मुक्तक
भूलना आता नहीं कैसे भुलाऊँ।
दूर तुझसे तू बता मैं कैसे जाऊँ।
रच गई है तू हथेली पर हिना-सी।
चाँद से ज्योति भला कैसे चुराऊँ।।

दूर हो मुझसे नहीं यह जानता।
फूल की तुम महक हो यह मानता।
घिर रही हो बादलों की ओट में।
बेवजह ही खाक है मन छानता।।

आज दो बूँदे मिली कलियाँ खिली।
हसरतों की फिर जरा डलियाँ हिली।
आस है जीवन जड़ी मन मानता।
नेमतों से भाव की फलियाँ मिली।

बनकर मीत चलो संग जाने।
सच है प्रीत नहीं अनजाने।
बाँट हृदय की लें मिल पीड़ा।
इतना कहना तो मन माने।।

दवा बेअसर हो अगर , नज़र उतारे आप।
हार कभी माने नहीं ,मात हृदय हो ताप।।
भोजन,धन,सम्मान जग , जुड़े उन्हीं के पास।
जो बाँटे अवसर पड़े , सत्य यही संलाप।।

दोहे
प्यार नहीं नफ़रत सही , मीत मुझे मंजूर।
पास रहो बस आरजू , दूरी नामंजूर।।

सुजन छोड़ते हैं नहीं , कभी सुजन का संग।
क्षीर संग केसर मिले , बने उसी का अंग।।

प्रीत महज़ विश्वास है जुड़े आप ही आप।
लाख जतन कोई करे रहे मौन मन जाप।।

ज्ञान साधता बुद्धि को , हृदय प्रेम बल जीत।
कर्म शुद्धि उपकार से , मिले सहज ही प्रीत।।

जोड़-जोड़ कण मन करो , जोड़ सुमन मन प्यार।
मन से मन जब जुड़ चले , खुले मोक्ष के द्वार।।

रंग लगा मन प्रीत का , हुई बावरी देख।
संग नहीं साजन सखी , विधि लिखे का लेख।।

प्रेम धरा की जिंदगी , बरस रहे घन घोर।
छोड़ व्यर्थ की रार को , नेह बोल चितचोर।।

पीड़ा को मन में लिये , चला गया गंभीर।
खड़ा अकेला देखता , कौन बंधावै धीर।।

भान आज होता मुझे , नहीं गगन है पास।
पंख विकल लाचार है , टूट गयी मन आस।।

जुड़े हृदय ज्यों रश्मियाँ , उज्ज्वल जग आकाश।
कहो कभी क्या छोड़ते , पुंज सुजन प्रकाश।।

दूर क्यों
क्यों हो दूर समझ कब पाता।
जहाँ पर मेघ वहीं जल आता।
जेठ तपे आतप मन रोगी।
सूखा सावन जग जल जाता।।

आज साथ सोना जैसा है।
व्यर्थ हुआ देखो पैसा है।
पीर जले जो संग चार पल।
जीत मीत सोना कैसा है।।

सच में मीत अगर बन जाते।
पिक कोयल जैसे मन गाते।
भूल जहां की दुश्वारी सब।
धरा – गगन जैसे तन पाते।।

प्रीत नहीं संग ही चाहत है।
मीत बनो कुछ तो राहत है।
दूर करो क्यों मन को तन से।
फेर नज़र अब मन आहत है।।

बोल बोल दो मीत खोल मुख।
मन घायल है जरा तोल दुख।
साहस,बल,उत्साह से भर दो।
मानो अब मत करो गोल रुख।।

दुख में तो सब हाथ बढ़ाते।
झूठ सही पर नयन बहाते।
नहीं उलाहना कोई तुमसे।
रीत पुरातन तनिक निभाते।।

बोल बोल दो मन राहत दो।
भले नहीं मन को चाहत हो।
चले संग दो चार दिवस मिल।
धीर बँधा दो मत आहत को।।

सपने पापड़ की ज्यों टूटे।
तुम मिलने से पहले रूठे।
काश! ख्वाब में ही आ जाते।
कह देते मन ठग ने लूटे।।

करुणा मन को मीत रुलाती।
आकर रुकती फिर कब जाती।
झंझा की ज्यों झिड़क-झिड़क कर।
तन – वीणा को खूब बजाती।।

प्रेम

क्या है तुम में तुम क्या जानो।
दूर हो जिससे उसकी मानो।
फूल गंध से मेघ नीर से।
प्रीत रीत को तो पहचानो।।

तू मुझे चाहे न चाहे मैं मगर मजबूर हूँ।
धूल में मिल जाऊँगा देखो चमकता नूर हूँ।
कर बढ़ाकर थाम ले दो जाम होंठों से पिला।
सच कहूँ मानो न मानो प्रीत की तस्वीर हूँ।।

छाये घन ज्यों नभ-मन ऊपर।
बरसाओ अब रस तन ऊपर।
भींगे धरा बीज पुलकित हो।
आकुल आँख निरख जन ऊपर।।

🌹विविध मुक्तक 🌹
जुड़ गया मन ज्यों धरा से मेघ की धारा जुड़े।
साथ हो तन दूर जीवन चाँद बिन तारा जुड़े।
है अँधेरा दूर तक ही रोशनी खोयी हुई।
पास आ लग जा गले से नैन जल खारा जुड़े।।

🌹गीत सुनाओ 🌹
चलो आज फिर गीत सुनाये।
बिछड़ गये वो मीत बुलाये।।

मन की घाटी सूनी सारी।
सतरंगी संगीत सजाये।।

उलझन में उलझे हैं हम सब।
आओ दीपक – प्रीत जलाये।।

गहरे वन के बीच अकेले।
एक तरु मनमीत लगाये।।

उजड़े भी फिर से बसते हैं।
देव यही फिर रीत चलाये।।
[17/07/2021, 7:12 pm] Dev:
जीवन धक्कम पेल नहीं है।।
मन का मन से मेल नहीं है।
पाना जग में सच्चा साथी।
प्रीत मीत सुन खेल नहीं है।।

जिंदगी की जड़ी हो।
फूल की सी लड़ी हो।
कूकती कोकिला-सी।
क्यों नहीं फिर झड़ी हो।।
[10/08/2021, 10:48 pm] Dev:
राम बसा हर रोम में , रटौ राम दिन-रात।
राम-राम रट भव तरे , देव,दनुज,खग पात।।

भाई-बहिन की प्रीत है , दूध नीर का संग।
त्याग भावना ही प्रबल , दूर कामना रंग।।

🌹शीत की धूप-सी 🌹

शीत में ज्यों धूप – सी मन छा गई
गीत बनकर लब-कमल को भा गई
खिल गई गुल-सी चमन में दिलरुबा
खनखनाती जिंदगी में आ गई।।

मन विकल था लब बड़े खामोश थे
कंज – नैना शीत में बेहोश थे
तन सुकोमल फूल ज्यों मुरझा रहा
पा छुवन तन-मन खिला मदहोश थे।।

रूप की खुशबू बसी हुए मन हरे
तोड़ डाले पीर बंधन दिन फिरे
पग बढ़ा हर पल चली किरणों सदृश
पावनी गंगा में मन – मंजुल तिरे।।

आ खिले गुल तीन फिर महका चमन
पिक हँसी शुक झूमता जीवन मगन
थाम कर में घर सुमन महका दिया
देव गाता गीत भूला हर चुभन।।
____________________________________________
🌹दोहे 🌹

मात-पिता गुरुजन सखा , मिला खूब आशीष ।
सरित – देव मन मुग्ध हैं , चरण नवाते शीश ।।

सूख रहा मन खेत ज्यों , तरस रहे थे बूँद ।
बरसे बन घनश्याम ज्यों , सुजन नयन लिये मूँद ।।

पाया जब से संग है , सुमन खिले हैं खूब ।
कोना-कोना महकता , चमन बना महबूब ।।

बरस गये पल की तरह , पला नेह मन खूब ।
निर्मल मन नभ ज्यों खिला , संग सुपावन दूब ।।

सदा निभाई रीत कुल , सुख-सूरज कर त्याग ।
धर्म-कर्म पथ पग बढ़े , खिले सुमन के भाग ।।

संग सुपावन गंग ज्यों , जन्म रहे यह सात ।
मिले खिले हर बार ही , दिनकर ज्यों प्रभात।।

सरिता-सा सुंदर बना , मिला सुपावन संग ।
रोम-रोम हर्षित हुआ , सुमन खिला हर अंग ।।

पढ़ी पुस्तकें खूब पढ़ा कब जिगर भला।
खिला कहो मन-फूल विवश हो फ़िकर गला।
अगर नज़र भर देख प्रीत की पोथी को।
गिला मिला सब धूल हर्ष में निखर चला।।

🌹प्यासा 🌹
इतना भी क्यों रूठे हमसे।
आ बैठे मन में तुम धम से।
भूल हुई क्या तुम्हीं बताओ।
चाहा है बस तन-मन दम से।।

बस देखा है मन को हमने।
रक्त हुआ बस देखो जमने।
चाह नहीं की कर छूने की।
घेर लिया फिर क्यों इस ग़म ने।।

तुम पथ पर हो सही यही है।
विपथ हुआ पर गुनाह वही है।
चाहा क्या जो यूँ रूठे हो।
प्रीत पवन मन बही सही है।।

गुनाह एक ही हमने जाना।
अनजाने ही मन ने ठाना।
माना भूल हुई है हमसे।
आग बिना धुँआ बेमाना।।

छू लो मन की दीवारों को
खोलो तन की मीनारों को
बहता जाता समय-नीर है
बोलो खुल कर हरकारों को

दूर नहीं बस पास हो मेरे।
देखो तो तन – मन को घेरे।
पल भी पलक नहीं बंद करती।
निरख चाँद चातक लो तेरे।।

आओ मन की प्यास बुझा दो।
गीत लबों पर मीत सजा दो।
तृषित भटकता हूँ मरुथल में।
जलधि बूँद दो आस जगा दो।।

घेरे हो मन – तन को मेरे।
घन जैसे अंबर को घेरे।
दाह विरह की सहूँ भला क्यों।
प्रीत लहर गम – तम को फेरे।।

🌹अभी-अभी🌹

नहीं मालूम था ऐसे नजर को फेर लोगे तुम।
जुबां को सील कर अपने जिगर को टेर लोगे तुम।
समझ भी हार बैठी है किनारा दूर जाता है
चुरा कर मन सुजन मेरा नहीं फिर सेर दोगे तुम
।।

🌹लब तो खोलो 🌹
कैसे हो लब खोल बता दो।
मीत तनिक सी प्रीत जता दी।
बादल भी बरसे सावन में।
आज भुला सब मीत खता दो।।

[हर घड़ी दिल में धड़कते धड़कनों के संग तुम।। इस जन्म में बन गये हो मीत मन के अंग तुम। फूल खुशबू से महकता महकता वैसे सुजन। थाम लो कर आज आकर क्यों खड़े हो दंग तुम।।

🌹प्रेम तकरार 🌹
मेरे मन की गली में बसेरा किया।
रीत अच्छी नहीं आज तकरार की।

मैंने जाना नजर से नहीं मन सखा।
बात मन की है मन पर है एतबार की।।

भाव की भूमि पर प्रीत अंकुर उगे।
चोट खायी नहीं रूप झंकार की।।

दूर से ही परिचय हुआ प्यार का।
कामना काम जागी न मनुहार की।।

आज भी प्यार है बेझिझक कह रहा।
देव कायल सरल मीत व्यवहार की।।

आज कर बात लो आर या पार की।
सूखती है नदी प्यार के प्यार की।।

🌹 कामना 🌹
तन-बदन चाह मन को नहीं है सनम।
भाव ही मन जगा थामना है सनम।।
लाख फिरते यहाँ फूल सूखे हुए।
रससिक्त फूल की चाहना है सनम।।
बिक रहे हैं यहाँ स्वर्ण की धूल में।
हस्त रिक्त दीखते कामना है सनम।।
आपकी रूह से रूह ऐसी जुडी।
देव दिल ने रची भावना है सनम।।

देव
🌹पद 🌹
मन को मन ही जाने प्यारे।
बिन लागे पीड़ा कब जागे लोग लगाते ताने।
मणि हीन हो नाग तड़पता प्रीत-अनल वो जाने।
चातक मेघ निहारे निश-दिन तृषा नीर अकुलाने।
चाँद निरखता रहे चकोरा हृदय लगी दिवाने।
देव आस त्यागे क्यों मन की चाह रहा अनुमाने।
देव

Language: Hindi
60 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
🙏 *गुरु चरणों की धूल*🙏
🙏 *गुरु चरणों की धूल*🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
हाथ पर हाथ धरे कुछ नही होता आशीर्वाद तो तब लगता है किसी का ज
हाथ पर हाथ धरे कुछ नही होता आशीर्वाद तो तब लगता है किसी का ज
Rj Anand Prajapati
राजनीति
राजनीति
Bodhisatva kastooriya
घर घर रंग बरसे
घर घर रंग बरसे
Rajesh Tiwari
चश्मा
चश्मा
Awadhesh Singh
मैं कौन हूं
मैं कौन हूं
Dr Nisha Agrawal
रिवायत दिल की
रिवायत दिल की
Neelam Sharma
ग़ज़ल : इन आँधियों के गाँव में तूफ़ान कौन है
ग़ज़ल : इन आँधियों के गाँव में तूफ़ान कौन है
Nakul Kumar
हां वो तुम हो...
हां वो तुम हो...
Anand Kumar
BJ88 là nhà cái đá gà giữ vị trí top 1 châu Á, ngoài ra BJ88
BJ88 là nhà cái đá gà giữ vị trí top 1 châu Á, ngoài ra BJ88
Bj88 - Nhà Cái Đá Gà Uy Tín Số 1 Châu Á 2024 | BJ88C.COM
हिम्मत है तो कुछ भी आसान हो सकता है
हिम्मत है तो कुछ भी आसान हो सकता है
नूरफातिमा खातून नूरी
𝐓𝐨𝐱𝐢𝐜𝐢𝐭𝐲
𝐓𝐨𝐱𝐢𝐜𝐢𝐭𝐲
पूर्वार्थ
सीमजी प्रोडक्शंस की फिल्म ‘राजा सलहेस’ मैथिली सिनेमा की दूसरी सबसे सफल फिल्मों में से एक मानी जा रही है.
सीमजी प्रोडक्शंस की फिल्म ‘राजा सलहेस’ मैथिली सिनेमा की दूसरी सबसे सफल फिल्मों में से एक मानी जा रही है.
श्रीहर्ष आचार्य
"यादें" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
4778.*पूर्णिका*
4778.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शक
शक
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम
तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम
शेखर सिंह
अनंत नभ के नीचे,
अनंत नभ के नीचे,
Bindesh kumar jha
अब तो इस वुज़ूद से नफ़रत होने लगी मुझे।
अब तो इस वुज़ूद से नफ़रत होने लगी मुझे।
Phool gufran
प्यार खुद से कभी, तुम करो तो सही।
प्यार खुद से कभी, तुम करो तो सही।
Mamta Gupta
मेरा दुश्मन
मेरा दुश्मन
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
कूष्माण्डा
कूष्माण्डा
surenderpal vaidya
" शहर के चेहरे "
Dr. Kishan tandon kranti
उम्र बीत गई
उम्र बीत गई
Chitra Bisht
प्यासी कली
प्यासी कली
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
*अजब है उसकी माया*
*अजब है उसकी माया*
Poonam Matia
*
*"परछाई"*
Shashi kala vyas
ਮਿਲੇ ਜਦ ਅਰਸੇ ਬਾਅਦ
ਮਿਲੇ ਜਦ ਅਰਸੇ ਬਾਅਦ
Surinder blackpen
कितनी बेचैनियां
कितनी बेचैनियां
Dr fauzia Naseem shad
बेकरार दिल
बेकरार दिल
Ritu Asooja
Loading...