खुशी तो आयी टुकड़े टुकडे , गम पर हरपल पास रहा।
खुशी तो आयी टुकड़े टुकड़े गम पर हरपल पास रहा।
बस्ती में है उम्र गुज़ारी मगर वनवास रहा।
सम्बन्धो के बियाबान में उलझे सुलझे रहे सदा।
उबड़ खाबड़ भू पर आयी समतल भूमि यदा कदा।
पंख नहीं मिल पाए हमको आंखों में आकास रहा।
खुशी तो आयी ——–
बहुरूपी बहुभाषी हैं सब स्वार्थ के रंग में रंगे हुये।
भोले भाले दिखते हैं पर सब हैं खिलाड़ी मंजे हुए।
खेल न पाए निर्दयता से हार हमारा खास रहा।
खुशी तो आयी———-
घाव दिए अपनो ने ऐसे आंसू सारे सूख गए।
ऐसा लगता है जैसे हम हर रिश्ते में चूक गए।
दोष किसे दें भावुकता का शाप सदा ही पास रहा।
खुशी तो आयी————