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28 Nov 2023 · 2 min read

*खादिम*

लेखक : डॉ अरुण कुमार शास्त्री – पूर्व निदेशक – आयुष – दिल्ली

खादिम

दुआ करता है ये खादिम तू ही तू नज़र आये ।
मिरे मौला तेरी सूरत हरसू नज़र आये ।

मेरे हर काम में खुदा की रहमत नज़र आये ।
दर्द से काम क्या जब दिलबरी असर लाये ।

मिटा दे अंधेरे सुन्दर मुखड़ा दिखा दे ।
सलोनी सी राधा साँवले से कानहा रु – ब – रु आये ।

गीता के ऐसे चुनिंदा चंद छंद भेज दे ।
ये दुनिया ये दुनियादारी से रख दूर मुझको ।

मुझको तो बस अपने पाक दामन का कफन भेज दे ।
हकों हलाल की रोटी में खाऊँ ।

नमक मेरे मौला तू अपने वतन का मुझे भेज दे ।

मेरे वतन के लिए मिरी जां हो हाजिर ।
कतरा – कतरा लहू का हो इसकी खातिर ।

ऐसे कट्टर विचारों का एय मालिक असर भेज दे ।
गिरह –
मिटा दे आसुरी सभी शक्तियाँ मेरे दाता ।
काश्तकारों के लिए पुरनूर वज़न भेज दे ।

न हो तेरी दुनिया में कोई राजा न राया ।
सबको बराबर का ऐसा इक हक भेज दे ।

करे पाप क्यूँ कोई भरे दंड फिर आदमी क्यूँ कोई ।
सभी को अपनी नजरें इनायत का अलम भेज दे ।

न हो कोई छोटा न कोई भी हो बड़ा किसी से ।
सबको इकसार एय मौला जीने का हक भेज दे ।

ये दुनिया है फ़ानी नहीं कोई रहबर नहीं कोई जांनी ।
तू ही था सबका तू ही ने रहना तू ही करेगा रखवाली ।

दुआ करता है ये खादिम तू ही तू नज़र आये ।
मिरे मौला तेरी सूरत हरसू नज़र आये ।

मेरे हर काम में खुदा की रहमत नज़र आये ।
दर्द से काम क्या जब दिलबरी असर लाये ।

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