खतो-किताबत
पता भेज दो अपना, कोई खतो-किताबत हो।
इतना ही बस लिखना,तुम मेरी मोहब्बत हो।
बात बेबात रूठना ,जब से हुई है आदत तेरी,
इल्ज़ाम सर ले लेते हैं ,जैसे अपनी हिमाकत हो।
ग़र इश्क हो गया कभी ,तुम्हें एक तितली से
निभाना ऐसे कि रंगों की पूरी हिफाजत हो।
होना चाहिए किरदार ऐसा दुनिया में बंदे का
रूखसत हो तो सूरत ए अश्क ए निदामत हो।
गुनाह उतने ही कर तू,आकर इस दुनिया में
सजदे में सर झुके ,इतनी तेरे पास मोहलत हो
सुरिंदर कौर