खंडहर में अब खोज रहे ।
जग में जो जिंदा हैं,
बिछड़कर कितने गुजर गए ,
बना करके छोड़ गए खंडहर ,
खंडहर में अब खोज रहे ,
अपनों के हकीकत का रहस्य ।
वीरान पड़ा खंडहर का वह कक्ष,
हिलते-डोलते जर्जर-सा वो पट ,
रेशम के जाल से बँधा हुआ छत ,
खंडहर में अब खोज रहे ,
अपनों के हकीकत का रहस्य ।
दफन है राज अभी भी अधूरे हैं,
खोदने में मिलते हैं खंडहर,
कभी जो हकीकत में पूरे हुए,
खंडहर में अब खोज रहे ,
अपनों के हकीकत का रहस्य ।
मासूमियत तो देखो नदानों की,
गुजरे हुए अनमोल शख्स खोज रहे हैं,
मिलता है सिर्फ एहसास बिछड़े हुए का,
खंडहर में अब खोज रहे ,
अपनों के हकीकत का रहस्य ।
बेचैनी इतनी-सी है जमाने की,
खोए हुए से थोड़ा ख्याल पूछ ले,
रह गया शेष भाग यूंँ ही भूल गए ,
खंडहर में अब खोज रहे ,
अपनों के हकीकत का रहस्य ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।