खंडर इमारत
खड़ी एक इमारत सड़क से थोड़ी दूर,
सुनसान जगह पर है ,
कभी यह भी रही होगी बहुत विशाल बहुत आलीशान ,
मगर अब महज़ एक खंडर है।
सुना था आज तक दीवारों के कान होते है ,
मगर आज देखी है एक इमारत ऐसी ,
जो बोलती है अपनी बोली ,
बोल रही है मुझसे ,
देखो ज़रा सा मेरी ओर ,
देखो किस तरह हुआ है घमंड मेरा चूर – चूर ,
कभी थी मैं भी बहुत खुशहाल ,
मगर देखो अब हूँ किस तरह बेहाला ।
मेरे आंगन से भी सुनाई देती थी
बच्चो की चेह – चाहट ,
मगर अब सुनाई पड़ती बस ,
हवाओं की सर – सराहट,
देखो ज़रा सा मेरी ओर ,
मै हूँ एक पुरानी इमारत ,
जो रहना तो चाहती थी आबाद ,
मगर अब है बेहद बर्बाद ।।२
❤️स्कंदा जोशी