क्या हम युग परिवर्तन की ओर बढ़ रहे हैं ?
सृष्टि का अपना चक्र है। पुरातन ग्रंथों पौराणिक कथाओ और इतिहास को पढ़कर यह ज्ञात होता है कि समय चक्र के अनुसार युग परिवर्तन होना निर्धारित है। इसलिए यह कहना गलत नहीं कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है। युग शब्द का अर्थ एक निर्धारित वर्षों की संख्या की अवधि से होता है। यदि हम पौराणिक ग्रंथों के आधार पर देखें तो यह ज्ञात होता है कि सृष्टि की रचना में सतयुग, त्रेता युग ,द्वापर युग और कलयुग का समय चक्र निर्धारित है। जैसे-जैसे मानव बौद्धिक और जैविक रूप से विकास की ओर बढ़ता चला जाता है वैसे वैसे समाजिक ढांचा रूपांतरित होता जाता है और यूं ही सृष्टि चक्र चलता रहता है।
सतयुग को प्रथम युग के रूप में जाना जाता है। इस युग में सत्य का बोलबाला होता है। किसी भी तरह का कोई पाप कर्म नहीं पाया जाता है। इस युग को प्रमुख नरसिंह अवतार से जुड़ा जाता है। मान्यता अनुसार इस युग की अवधि 17 लाख 28 हजार वर्ष मानी जाती है । इसके पश्चात त्रेता युग का आगमन होता है । इस युग में राम अवतार हुए । जिसमें सत्य का बोलबाला कुछ घट जाता है और छल कपट देखने को मिलता है। इस वर्ष की अवधि 12 लाख 96 हजार वर्ष मानी जाती है। तीसरे स्थान पर द्वापर युग देखने को मिलता है । इस युग में कृष्ण अवतार हुए। जिसमें सत्य और छल कपट दोनों ही का बोलबाला देखने को मिलते हैं। इस वर्ष की अवधि 86 लाख 4 हजार वर्ष मानी जाती है। अंत में कलयुग आता है । वर्तमान समय को कलयुग का समय ही कहा जाता है। इस समय में पाप का बोलबाला देखने को मिलता है । जिसकी अवधि 4 लाख 32 हजार वर्ष बताई गई है। ऐसी मान्यता है कि धरती का उद्धार करने के लिए इस युग में कल्कि अवतार होंगे। यह सभी अवतार भगवान विष्णु के ही माने जाते हैं।
आज विश्व जिस दौर से गुजर रहा है इस समय में होने वाली घटनाएं झूठ ,पाप, लूटपाट, दुष्कर्म ,हत्या इत्यादि कलयुग के दौर का प्रमाण है। आए दिन आने वाले भूकंप, तूफान, भीषण गर्मी सूखा तथा दिन प्रतिदिन बढ़ती बीमारियां महामारी इस बात का संकेत करती है कि कलयुग अपनी चरम सीमा पर है और हम एक बार फिर युग परिवर्तन की ओर अग्रसर है। एक मान्यता के अनुसार कलयुग और सतयुग के बीच के अंतराल को संगमयुग कहा जाता है यह वह समय है जब कलयुग का अंत हो रहा होता है और दूसरी तरफ सतयुग स्थापित हो रहा होता है। यदि हम युग परिवर्तन की तथाकथित मान्यताओं को गहराई में उत्तरे और समझे तो पाएंगे कि आज हम एक युग परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं। जिसमें कलयुग का अंत और सतयुग का आरंभ निर्धारित है।
सकून दिल को नहीं
चारों तरफ फैला कोहराम है
छूट रहा अपनों का अपनों से साथ है
बढ़ रहा धरा पर पाप अत्याचार है
अब धरा को कल्कि का इंतजार है
डूबती नैया का बस वही पतवार है
केशी गुप्ता
लेखिका समाजसेवी
द्वारका दिल्ली