क्या छिपा रहे हो
क्या छिपा रहे हो **** {कविता }
* क्या छिपा रहे हो
* कितना छिपाओगे
*लाख छुपाओगे उजाले को
💐उजाला किसी झिर्री से बाहर आ ही जायेगा
💐💐💐💐💐💐
*जो सच है ,सामने आ ही जाता है
** श्वेत मेघों की ओट में
वो छुपा बैठा था सच
बना-बना कर विभिन्न
आकृतियाँ मोहित कर
रहा था सभी को ।
💐 आसमान की ऊँचाइयाँ
पर जा -जाकर इतरा रहा था।
उसी में सच्चाई दिखा
दिल लुभा रहा था ।
💐 सुना था सच सामने आ ही जाता है
अचानक तेज आँधियाँ चली
सब अस्त-व्यस्त ।
श्वेत मेघों का पर्दा हटा
हो गया सब पानी-पानी ।
शाश्वत था जो वो सामने आ गया
लाख छुपा सत्य विभिन्न आकृतियों
वाले श्वेत ,काले ,घने ,मेघों की ओट में ।**💐
कुछ पल के लिए सच पर आवरण आजातें हैं
परन्तु आवरण हटते ही सच है, अपना अस्तित्व दिखा दैता है…..